________________ नयम शतक : उद्देशक 32] [493 तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक : प्रकार और भंग 30. तिरिक्खजोणियपवेसणए णं भंते ! कतिविहे पण्णते? गंगेया ! पंचविहे पण्णते, तं जहा-एगिदियतिरिक्खजोणियपवेसणए जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणियपवेसणए। 30 प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिक प्रवेशनक कितने प्रकार का कहा गया है ? [30 उ.] गांगेय ! वह पाँच प्रकार का कहा गया है। यथा---एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकप्रवेशनक यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक / 31. एगे भंते ! तिरिक्खजोणिए तिरिक्खजोणियपवेसणएणं पविसमाणे किं एगिदिएसु होज्जा जाव पंचिदिएसु होज्जा ? गंगेया ! एगिदिएसु वा होज्जा जाव पंचिदिएसु वा होज्जा। [31 प्र. भगवन् ! एक तिर्यञ्चयोनिक जीव, तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुश्रा क्या एकेन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होता है अथवा यावत् पंचेन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होता है ? [31 उ.] गांगेय ! एक तिर्यञ्चयोनिक जीव, एकेन्द्रियों में होता है, अथवा यावत् पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होता है / / 32. दो भंते ! तिरिक्खजोणिया० पुच्छा। गंगेया ! एगिदिएसु वा होज्जा जाव पंचिदिएसु वा होज्जा 5 / अहवा एगे एगिदिएसु होज्जा एगे बेइंदिएसु होज्जा / एवं जहा नेरइयपवेसणए तहा तिरिक्खजोणियपवेसणए वि भाणियन्वे जाव असंखेज्जा। [32 प्र.) भगवन् ! दो तिर्यञ्चयोनिक जीव, तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [32 उ.] गांगेय ! एकेन्द्रियों में होते हैं, अथवा यावत् पंचेन्द्रियों में होते हैं / अथवा एक एकेन्द्रिय में और एक द्वीन्द्रिय में होता है। जिस प्रकार नै रयिक जीवों के विषय में कहा, उसी प्रकार तियंञ्चयोनिक-प्रवेशनक के विषय में भी कहना चाहिए। यावत्- असंख्य तिर्यञ्चयोनिक-प्रबेशनक तक कहना चाहिए। विवेचन---तिर्यञ्चों के प्रवेशनक और उनके भंग-तिर्यञ्च एकेन्द्रिय भी होते हैं और पंचेन्द्रिय भी होते हैं / इसलिए उनका प्रवेशनक भी पाँच प्रकार का बताया गया है। इसी प्रकार एक तिर्यञ्चयोनिक जीव एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक में तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुया उत्पन्न होता है / तीन से लेकर असंख्यात तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक-भंग-तीन से लेकर असंख्यात तिर्यञ्चयोनिक जीवों के प्रवेशनक नैरयिकों के तीन से लेकर असंख्यात तक के प्रवेशनक के समान जानने 1. विवाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. 1, पृ. 442-443. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org