________________ [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र विवेचन-उत्कृष्ट पद में नरयिकप्रवेशनक भंग-उत्कृष्ट पद में सभी नैरयिक रत्नप्रभा में होते हैं / इसलिए रत्नप्रभा का प्रत्येक भंग के साथ संयोग होता है। द्विकसंयोगी 6 भंग--१.२, 1-3. 1-4, 1-5, 1-6, 1-7 ये 6 भंग होते हैं। त्रिकसंयोगी 15 भंग-१-२-३, 1-2-4, 1-2-5, 1-2-6, 1-2-7, 1-3-4, 1-3-5, 1-3-6, 1-3-7, 1-4-5, 1-4-6, 1-4-7, 1-5-6, 1-5-7, और 1-6-7 / चतुष्कसंयोगी 20 भंग---१-२-३-४, 1-2-3-5, 1-2-3-6, 1-2-3-7, 1-2-4-5, 1-24-6, 1-2-4-7, 1-2-5-6, 1-2-5-7, 1-2-6-7, 1-3-4-5, 1-3-4-6, 1-3-4-7, 1-3-5-6, 1-3-5-7, 1-3-6-7, 1-4-5-6, 1-4-5-7, 1-4-6-7 और 1-5-6-7 / पंचमसंयोगी 15 भंग---१-२-३-४-५, 1-2-3-4-6, 1-2-3-4-7, 1-2-3-5-6, 1-2-35-7, 1-2-3-6-7, 1-2-4-5-6, 1-2-4-5-7, 1-2-4-6-7, 1-2-5-6-7, 1-3-4-5-6, 1-3-45-7, 1-3-4-6-7, 1-3-5-6-7 और 1-4-5-6-7 / षट्संयोगी 6 भंग–१-२-३-४-५-६, 1-2-3-4-5-7, 1-2-3-4-6-7, 1-2-3-5-6-7, 1-2-4-5-6-7 और 1-3-4-5-6-7 / सप्तसंयोगी 1 भंग-१-२-३-४-५-६-७ / ' रत्नप्रभादि नरयिक प्रवेशनकों का अल्पबहुत्व 29. एयस्स गं भंते ! रयणप्पभापुढविनेरइयपवेसणगस्स सक्करप्पभापुढवि० जाव अहेसत्तमापुढविनेरइयपवेसणगस्स य कयरे कयरेहितो जाब विसेसाहिए वा ? गंगेया! सव्वत्थोवे अहेसत्तमापुढविनेरइयपवेसणए, तमापुढविनेरइयपवेसणए असंखेज्जगुणे, एवं पडिलोमगं जाव रयणप्पभापुढविनेरइयपवेसणए असंखेज्जगुणे। [26 प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभा-पृथ्वी के नैरयिकप्रवेशनक, शर्कराप्रभा पृथ्वी के नैयिकप्रवेशनक, यावत् अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकप्रवेशनक हैं, इनमें से कौन प्रवेशनक, किस प्रवेशनक से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? [26 उ. गांगेय ! सबसे अल्प अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिक-प्रवेशनक हैं, उनसे तमःप्रभापृथ्वी नैरयिकप्रवेशनक असंख्यातगुण हैं। इस प्रकार उलटे क्रम से, यावत् रत्नप्रभा-पृथ्वी नैरयिकप्रवेशनक असंख्यातगुण हैं / विवेचन--अधःसप्तम पृथ्वी में जाने वाले जीव सबसे थोड़े हैं। उनकी अपेक्षा तमःप्रभा में जाने वाले संख्यातगुण हैं / इस प्रकार विपरीत क्रम से एक-एक से आगे के असंख्यातगुणे हैं / कठिन शब्दों का भावार्थ-एयस्स णं इनमें से / पडिलोमगं--प्रतिलोम-विपरीत क्रम से / 1. वियाहपणतिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. 1, 5.441-442 2. भगवती. विवेचन, (वं. घेवरचंदजी) भा. 4, पृ. 1666. 3. भगवती. विवेचन भा. 4 (पं. घेवरचन्दजी) पृ. 1666. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org