________________ नवम शतक : उद्देशक-३२] [491 सक्कर०, पंक० जाव अहेसत्तमाए य होज्जा 5 / अहवा रयण०, बालुय०, जाध अहेसत्तमाए होज्जा 6 / अहवा रयणप्पभाए य, सक्कर, जाव एअहेसत्तमाए होज्जा 1 / [28 प्र. भगवन् ! नैरयिक जीव नै रयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए उत्कृष्ट पद में क्या रत्नाप्रभा में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [28 उ.] गांगेय ! उत्कृष्टपद में सभी नै रयिक रत्नप्रभा में होते हैं। (द्विकसंयोगी 6 भंग)-(१) अथवा रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा में होते हैं। (2) अथवा रत्नप्रभा और बालुकाप्रभा में होते हैं। इस प्रकार यावत् (3-6) रत्नप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। (त्रिकसंयोगी 15 भंग)-(१) अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा और बालुकाप्रभा में होते हैं / इस प्रकार यावत् (2-5) रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं / (6) अथवा रत्नप्रभा वालुकाप्रभा और पंकप्रभा में होते हैं। यावत् (7-6) अथवा रत्नप्रभा, वालुकाप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। (10) अथवा रत्नप्रभा, पंकप्रभा और धूमप्रभा में होते हैं। जिस प्रकार रत्नप्रभा को न छोड़ते हुए तीन नैरयिक जीवों के त्रिकसंयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए / यावत् (15) अथवा रत्नप्रभा, तम:प्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। (चतुःसंयोगी 20 भंग)-(१) अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा और पंकप्रभा में होते हैं, (2) अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा और धूमप्रभा में होते हैं / यावत् (4) अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं / (5) अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, पंकप्रभा और धूमप्रभा, में होते हैं / रत्नप्रभा को न छोड़ते हुए जिस प्रकार चार नैरयिक जीवों के चतःसंयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए, यावत् (20) अथवा रत्नप्रभा धमप्रभा, तम:प्रभा और अधःसप्तमपथ्वी में होते हैं। (पंचसंयोगी पन्द्रह भंग) (1) अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा और धूमप्रभा में होते हैं / (2) अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा और तम:प्रभा में होते हैं / (3) अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। (4) अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा धूमप्रभा और तमःपृथ्वी में होते हैं / रत्नप्रभा को न छोड़ते हुए जिस प्रकार 5 नैरयिक जीवों के पंचसंयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए, अथवा यावत् (15) रत्नप्रभा, पंकप्रभा यावत् अधःसप्तमपथ्वी में होते हैं। (षट्संयोगी 6 भंग-) (1) अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा यावत् धूमप्रभा और तमःप्रभा में होते हैं / (2) अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा यावत् धूमप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। (3) अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा यावत् पंकप्रभा, तमःप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। (4) अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, धूमप्रभा, तम प्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। (5) अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, पंकप्रभा, यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं / (6) अथवा रत्नप्रभा, बालुकाप्रभा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। (सप्तसंयोगी एक भंग--) (1) अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं / इस प्रकार उत्कृष्ट पद के सभी मिल कर चौसठ (6+15+20+1+6+1=64) भंग होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org