________________ 490] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र जिस प्रकार संख्यात नैरयिकों के द्विकसंयोगी यावत् सप्तसंयोगी भंग कहे, उसी प्रकार असंख्यात के भी कहना चाहिए / परन्तु इतना विशेष है कि यहाँ 'असंख्यात' यह पद कहना चाहिए। (अर्थात्-बारहवाँ असंख्यात पद कहना चाहिए 1) शेष सभी पूर्वोक्त प्रकार से जानना चाहिए। यावत्-ग्रान्तम पालापक यह है--अथवा असंख्यात रत्नप्रभा में, असंख्यात शर्कराप्रभा में यावत् असंख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। विवेचन-असंख्यात पद के एकसंयोगी भंग--सात होते हैं। द्विकसंयोगी से सप्तसंयोगी तक भंग-असंख्यातपद के द्विकसंयोगो 252, त्रिकसंयोगी 805, चतुष्कसंयोगी 1160. पंचसंयोगी 645, षट्संयोगी 362 एवं सप्तसंयोगी 67 भंग होते हैं, इस प्रकार असंख्यात नैरयिकों के नैरयिकप्रवेशनक के कुल मिलाकर 3658 भंग होते हैं।' उत्कृष्ट नैरयिक-प्रवेशनक-प्ररूपणा 28. उक्कोसा णं भंते ! नेरइया नेरतियपवेसणएणं० पुच्छा ? गंगेया ! सब्वे वि ताव रयणप्पभाए होज्जा 7 / * अहवा रयणप्पभाए य सक्करप्पभाए य होज्जा / अहवा रयणप्पभाए य वालुयप्पभाए य होज्जा, जाव अहवा रयणप्पभाए य अहेसत्तमाए य होज्जा। अहवा रयणप्पभाए ये सक्करप्पभाए य वालुयप्पभाए य होज्जा। एवं जाव अहवा रयण, सक्करप्पभाए य अहेसत्तमाए य होज्जा 5 / अहवा रयण०, वालुय०, पंकप्पभाए य होज्जा; जाव अहवा रयण०, वालुय, अहेसत्तमाए य होज्जा 4 / अहवा रयण०, पंकप्पभाए य, धूमाए य होज्जा। एवं रयणपभं अमुयंतेसु जहा तिण्हं तियासंजोगो भणिओ तहा भाणियव्वं जाव अहवा रयण०, तमाए य, अहेसत्तमाए य होज्जा 15 / अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए, वालुय०, पंकप्पभाए य होज्जा। अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए, वालुय०, धूमप्पभाए य होज्जा; जाव अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए, वालुय, अहंसत्तमाए य होज्जा 4 / अहवारयण०, सक्कर०. पंक०, धमष्पभाए य होज्जा। एवं र अमुयंतेसु जहा चउण्हं चउक्कसंजोगो तहा भाणियध्वं जाव अहवा रयण, धूम०, तमाए, अहेसत्तमाए होज्जा 20 / अहवा रयण, सक्कर०, वालुय०, पंक०, धूमप्पभाए य होज्जा 1 / अहवा रयणप्पभाए जाव पंक०, तमाए य होज्जा 2 / अहवा रयण० जाय पंक०, अहेसतमाए य होज्जा 3 / अहवा रयण०, सक्कर०, वालुय०, धूम०, तमाए य होज्जा 4 / एवं रयणप्पभं अमुयंतेसु जहा पंचण्हं पंचकसंजोगो तहा भागियध्वं जाव अहवा रयण०, पंकप्पभा, जाव अहेसमाए होज्जा 15 / अहवा रयण, सक्कर०, जाव धूमपभाए, तमाए य होज्जा 1 / अहवा रयण, जाव धूम०, अहेसत्तमाए य होज्जा 2 / अहवा रयण०, सक्कर०, जाव पंक०, तमाए य, अहेसत्तमाए य होज्जा 3 / अहवा रयण, सक्कर०, वालुय०, धूमप्पभाए, तमाए, अहेसत्तमाए होज्जा 4 / अहवा रयण, 1. वियाहाणत्तिसुतं, (मूलपाठ-टिप्पण) भा. 1, पृ. 440 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org