SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1086
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवम शतक : उद्देशक-३२] [485 __अथवा एक रत्नप्रभा में और नौ शर्कराप्रभा में होते हैं; इत्यादि जिस प्रकार नौ नैरयिक जीवों के द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी, चतुःसंयोगी, पंचसंयोगी, षट्संयोगी एवं सप्तसंयोगी भंग कहे गए हैं, उसी प्रकार दस नैरयिक जीवों के भी (द्विकसंयोगी यावत् सप्तसंयोगी) कहने चाहिए / विशेष यह है कि यहाँ एक-एक ने रयिक का अधिक संचार करना चाहिए, शेष सभी भंग पूर्ववत् जानने चाहिए / उनका अन्तिम पालापक (भंग) इस प्रकार है अथवा चार रत्नप्रभा में, एक शकंराप्रभा में यावत् एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है / विवेचन.. दस नरयिकों के असंयोगी भंग- केवल सात होते हैं। द्विकसंयोगी 189 भंग-इनके 6 विकल्प होते हैं / यथा 1-6, 2-8, 3-7, 4-6, 5-5 6-4, 7-3, 8-2, 6-1 / इन 6 विकल्पों के साथ सात नरकों के संयोग से जनित 21 भंगों को गुणा करने पर कुल 189 भंग त्रिकसंयोगी 1260 भंग-इनके 36 विकल्प होते हैं। यथा-१-१-८, 1-2-7, 1-3-6, 1-4-5, 1-5-4, 1-6-3, 1-7-2, 1-8-1, 2-7-1, 2-6-2, 2-5-3, 2-4-4, 2-3-5, 2-2-6, 2-1-7,3-6-1, 3-5-2, 3-4-3, 3-3-4, 3-2-5, 3-1-6, 4-5-1, 4-4-2, 4-3-3, 4-2-4, 4-1-5, 5-4-1, 5-3-2, 5-2-3, 5-1-4, 6-3-1, 6-2-2, 6-1-3, 7-2-1, 7-1-2, और 8-1-1 / इन 36 विकल्पों को, सात नरकों के संयोग से जनित पूर्वोक्त 35 भगों के साथ गुणा करने पर कुल 1260 भंग होते हैं। चतुष्कसंयोगी 2940 भंग-इनके 1-1-1-7 इत्यादि प्रकार से अंकों के परस्पर चालन से 84 विकल्प होते हैं। इन 84 विकल्पों को सात नरकों क संयोग से पूर्वोक्त प्रकार से जनित 35 भगों के साथ गुणाकार करने पर कुल भंगों की संख्या 2640 होती है / पंचसंयोगी 2646 भंग-इनके 1-1-1-1-6 इत्यादि प्रकार से अंकों के परस्पर चालन से 126 विकल्प होते हैं / इन 126 विकणों को सात नरकों के संयोग से (पूर्ववत् ) जनित 21 भंगों के साथ गुणा करने पर 126 x 21 = 2646 कुल भंग होते हैं। षटसंयोगी 882 भंग-इनके 1-1-1-1-1-5 इत्यादि प्रकार से अंकों के परस्पर चालन करने से 126 विकल्प होते हैं / इन 126 विकल्पों को सान नरकों के संयोग से जनित 7 भंगों के साथ गुणा करने पर भंगों की कुल संख्या 882 होती है। सप्तसंयोगी 84 भंग-इनके 1-1-1-1-1-1-4 इत्यादि प्रकार से अंकों के परस्पर चालन से 84 विकल्प होते हैं। इन्हें सात नरकों के समुत्पन्न एक भंग के साथ गुणाकार करने पर 84 भंग कुल होते हैं। इस प्रकार दस नैरयिकों के नरकप्रवेशनक के असंयोगी 7 भंग, द्विकर्मयोगी 186, त्रिकसंयोगी 1260, चतुष्कसंयोगी 2640, पंचसंयोगी 2646, षट्सयोगी 882 और सप्तसंयोगी 84 भंग, ये सभी मिल कर दस नैरयिक जीवों के कुल 8008 भंग होते हैं।' 1. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा-१, पृ-४३८ (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 447 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy