________________ 486) [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र संख्यात नैरयिकों के प्रवेशनकभंग-- 26. संखेज्जा भंते ! नेरइया नेरइयप्पवेसणएणं पविसमाणा० पुच्छा / गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा 7 / अहवा एगे रयणप्पभाए, संखेज्जा सक्करप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा / अहवा दो रयण, संखेज्जा सक्करप्पमाए वा होज्जा, एवं जाव अहवा दो रयण 0, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा / अहवा तिणि रयण, संखेज्जा सक्करप्पभाए होज्जा। एवं एएणं कमेणं एक्केको संचारेयन्को जाव अहवा दस रयण, संखेज्जा सक्करप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा दस रयण०, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा / अहवा संखेज्जा रयण, संखेज्जा सक्करप्पभाए होज्जा; जाव अहवा संखेज्जा रयणप्पभाए, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा / अहवा एगे सक्कर, संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा; एवं जहा रयणप्पभाए उवरिमपुढवीहिं समं चारिया एवं सक्करप्पभाए वि उरिमपुढवोहि समं चारेयव्वा / एवं एक्केक्का पुढवी उरिमपुढवीहि समं चारेयवा जाव अहवा संखेज्जा तमाए, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा / 231 / अहवा एगे रयण, एगे सक्कर०, संखेज्जा बालु यप्पभाए होज्जा / अहवा एगे रयण, एगे सक्कर०, संखेज्जा पंकप्पभाए होज्जा / जाब अहवा एगे रयण०, एगे सक्कर०, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा / अहवा एगे रयण०, दो सक्कर०, संखेज्जा वालुयप्यभाए होज्जा। जाव अहवा एगे रयण, दो सक्कर०, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा / अहवा एगे रयण, तिणि सक्कर०, संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा। एवं एएणं कमेणं एक्केवको संचारेयवो। अहवा एगे रयण, संखेज्जा सक्कर, संखेज्जा वालयप्पभाए होज्जा; जाव अहवा एगे रयण, संखेज्जा बालय०, संखेज्जा असत्तमाए होज्जा / अहवा दो रयण, संखेज्जा सक्कर०, संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा। जाव अहवा दो रयण, संखेज्जा सक्कर०, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा / अहवा तिणि रयण०, संखेज्जा सक्कर, संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा / एवं एएणं कमेणं एक्केक्को रयणप्पभाए संचारेयम्वो, जाव अहवा संखेज्जा रयण०, संखेज्जा सक्कर०, संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा; जाव अहवा संखेज्जा रयण, संखेज्जा सक्कर०, संखेज्जा असत्तमाए होज्जा / श्रहवा एगे रयण०, एगे वालुय०, संखेज्जा पंकप्यभाए होज्जा; जाव अहवा एगे रयण०, एगे वालुय०, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा / अहवा एगे रयण, दो बालुय०, संखेज्जा पंकप्पभाए होज्जा / एवं एएणं कमेणं तियासंजोगो चउक्कसंजोगो जाव सत्तगसंजोगो य जहा दसण्हं तहेव भाणियब्वो। पच्छिमो पालावगो सतसंजोगस्स–अहवा संखेज्जा रयण०, संखेज्जा सक्कर०, जाव संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा / 3337 / 26 प्र. भगवन् ! संख्यात नरयिक जीव, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / 26 उ.] गांगेय ! संख्यात नैरयिक रत्नप्रभा में होते हैं, यावत् अथवा अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। (ये असंयोगी 7 भंग होते हैं / ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org