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________________ 484] [व्यास्याप्रज्ञप्तिसूत्र होते हैं / इन 8 विकल्पों को सात नरकों के संयोग से जनित 21 भगों से गुणा करने पर कुल भंगों की संख्या 168 होती है। त्रिकसंयोगी 980 भंग---इसके 28 विकल्प होते हैं / यथा-१-१-७, 2-3-4, 4-1-4, 1-2-6, 2-4-3, 4-2-3, 1-3-5, 2-5-2, 4-3-2, 1-4-4, 2-6-1, 4-4-1, 1-5-3, 3-1-5, 5-1-3, 1-6-2, 3-2-4, 5-2-2, 1-7-1, 3-3-3, 5-3-1, 2-1-6, 3-4-2, 6-1-2, 2-2-5, 3-5-1, 6.2-1 और 7-1-1 / / इन 28 विकल्पों को सात नरकों के संयोग से जनित 35 भंगों के साथ गुणा करने पर कुल भंगों की संख्या 680 होती है। चतुष्कसंयोगो 1960 भंग-इसके 1-1-1-6 इस प्रकार चतुःसंयोगी 56 विकल्प होते हैं / इन्हें सात नरकों के संयोग से जनित (पूर्वोक्त) 35 भंगों के साथ गुणाकार करने पर कुल भंगों की संख्या 1660 होती हैं। पंचसंयोगी 1470 भंग-इसके पंचसंयोगी 1-1-1-1-6 इत्यादि प्रकार से 70 विकल्प होते हैं। इन्हें सात नरकों के संयोग से जनित 21 भंगों के साथ गुणा करने पर कुल भंगों की संख्या 1470 होती हैं। षटसंयोगी 392 भंग.--.इसके 1-1-1-1-1-4 इत्यादि प्रकार से 56 विकल्प होते हैं। इन विकल्पों को सात नरकों के संयोग से जनित 7 भंगों के साथ गुणा करने पर कुल 362 भग होते हैं। सप्तसंयोगी 28 भंग--इसके 1-1-1-1-1-1-3 इत्यादि प्रकार से 28 विकल्प होते हैं, इनका सात नरकों में से प्रत्येक के साथ संयोग करने से केवल 28 भंग ही होते हैं / ___ इस प्रकार नौ नैरधिकों के नरकप्रवेशनक के एक-संयोगी (असंयोगी) 7 भंग, द्विकसंयोगी 168, त्रिकसंयोगी 680, चतुष्कसंयोगी 1660, पंचसंयोगी 1470, पटसंयोगी–३६२, और सप्तसंयोगी 28 भंग, ये सब मिलाकर 5005 भंग हुए।' दश नैरयिकों के प्रवेशनकभंग----- 25. दस भंते ! नेरइया नेरइयपवेसणएणं पविसमाणा० पुच्छा। गंगेया ! रयणप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा 7 / अहवा 1 + 9 एगे रयणप्पभाए, नव सक्करप्पभाए होज्जा। एवं दुयासंजोगो जाव सत्तसंजोगो य जहा नवण्ह, नवरं एक्केवको अभहिओ संचारेयन्वो। सेसं तं चेव / अपच्छिमश्राला अहवा 4+1+1+1+1+1+1, चत्तारि रयण, एगे सक्करप्पनाए जाव एगे आहेसत्तमाए होज्जा / 8008 / [25 प्र.] भगवन् ! दस नैरयिकजीव, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में होते हैं ? इत्यादि (पूर्ववत्) प्रश्न / [25 उ.] गांगेय ! वे दस नैरयिक जीव, रत्नप्रभा में होते हैं, अथवा यावत अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। 1. (क) वियाहपरणतिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण युक्त) भा. 1, पृ. 437 (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 446 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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