________________ नवम शतक : उद्देशक-३२॥ पंचसंयोगी 735 भंग--इसके विकल्प 35 होते हैं। यथा--१-१-१-१-४ इत्यादि क्रम से पूर्वापरसंख्या के चालन से 35 विकल्प पूर्ववत् होते हैं। उन्हें सात नरकपदों से जनित 21 भंगों के साथ गुणा करने से कुल भंगों की संख्या 735 होती है / षट्संयोगी 147 भंग-इसके 21 विकल्प होते हैं / यथा--१-१-१-१-१-३ इत्यादि क्रम से पूर्वापर संख्याचालन से 21 विकल्प / इनके साथ सात नरकों के संयोग से जनित 7 भंगों का गुणा करने से कुल भंगों की संख्या 147 होती है। सप्तसंयोगी 7 भंग---इनके 7 विकल्प होते हैं / यथा-१-१-१-१-१-१-२, 1-1-1-1-12-1, 1-1-11-2-1-1, 1-1-1-2-1-1-1, 1-1-2-1-1-1-1, 1-2-1-1-1-1-1, 2-1-1-1-11-1 / इन सात विकल्पों का प्रत्येक नरक के साथ संयोग करने से केवल 7 भंग होते हैं। इस प्रकार आठ नै रयिकों के नरकप्रवेशनक के असंयोगी 7 भंग, द्विकसंयोगी 147, त्रिकसंयोगी 735, चतुष्क संयोगो 1225, पंचसंयोगी, 735, षट्संयोगी 147 और सप्तसंयोगी 7 भंग-कुल मिला कर सब भंग 3003 होते / / नौ नरयिकों के प्रवेशनकभंग 24. नव भंते ! नेतिया नेरतियपवेसणएणं पविसमाणा० पुच्छा। गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा 7 / अहवा 1-8 एगे रयण 0 अट्ठ सक्करप्पभाए होज्जा / एवं दुयासंजोगो जाव सत्तगसंजोगो य / जहा अटण्हं भणियं तहा नवण्हं पि भाणियव्वं, नवरं एक्केको अभहिलो संचारेयचो, सेसं तं चेव / पच्छिमो आलावगो-हवा तिण्णि रयण० एगे सक्कर० एगे वालय जाव एगे अहेसत्तमाए वा होज्जा / 5005 // 24 प्र. भगवन् ! नौ नैरयिक जीव, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / 24 उ. हे गांगेय ! वे नौ नैरयिक जीव रत्नप्रभा में होते हैं, अथवा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। अथवा एक रत्नप्रभा में और आठ शर्कराप्रभा में होते हैं; इत्यादि जिस प्रकार अष्ट नैरयिकों के द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी, चतुष्कसंयोगी, पंचसंयोगी, षट्सयोगी और सप्तसंयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार नौ नै रयिकों के विषय में भी कहना चाहिए / विशेष यह है कि एक-एक नैरयिक का अधिक संचार करना चाहिए। शेष सभी पूर्वोक्त प्रकार से जानना चाहिए। अंतिम भंग इस प्रकार है अथवा तीन रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, यावत् एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। विवेचन--नौ नैरयिकों के असंयोगी भंग--सात होते हैं। द्विकसंयोगी 168 भंग-इनके 1-8, 2-7, 3.6, 4-5, 6-3, 5-4, 7-2, 8-1 ये 8 विकल्प 1 (क) भगवती अ. वृत्ति, पत्र 446 (ख) बियापण्णत्तिसुत्तं, (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा 1, पृ, 436 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org