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________________ 482] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अहवा १+७एगे रयण सत्त सक्करप्पभाए होज्जा 1 / एवं यासंजोगो जाव छक्कसंजोगो य जहा सत्तण्हं भणिओ तहा अट्टण्ह वि भाणियव्वो, नवरं एक्केको प्रभहिरो संचारेयव्वो / सेसं तं चेव जाव छक्कसंजोगस्स / अहवा 3+1+1+1+1+ 1 तिणि सक्कर० एगे वालुय० जाक एगे अहेसत्तमाए होज्जा, अहवा एगे रयण जाव एगे तमाए दो अहेसत्तमाए होज्जा, अहवा एगे रयण जाव दो तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा, एवं संचारेयव्वं जाव अहवा दो रयण० एगे सक्कर० जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा / 3003 / (23 प्र.] भगवन् ! पाठ नैरयिक जीव, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [23 उ.] गांगेय ! रत्नप्रभा में होते हैं, यावत् अथवा अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं / अथवा एक रत्नप्रभा में और सात शर्कराप्रभा में होते हैं, इत्यादि ; जिस प्रकार सात नयिकों के द्विकसंयोगी विकसंयोगी, चतुःसंयोगी, पंचसंयोगी और षट्संयोगी भंग कहे गए हैं, उसी प्रकार आठ नैरयिकों के भी द्विकसंयोगी आदि भंग कहने चाहिए; किन्तु इतना विशेष है कि एक-एक नैरयिक का अधिक संचार करना चाहिए। शेष सभी षट्संयोगी तक पूर्वोक्त प्रकार से कहना चाहिए / अन्तिम भंग यह है-अथवा तीन शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में यावत् एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। (1) अथवा एक रत्नप्रभा में, यावत् एक तमःप्रभा में और दो अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। (2) अथवा एक रत्नप्रभा में यावत दो तमःप्रभा में और अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। इसी प्रकार सभी स्थानों में संचार करना चाहिए / यावत्---अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में यावत् एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। विवेचन--पाठ नैरयिकों के असंयोगी भंग सिर्फ 7 होते हैं। द्विकसंयोगी 147 भंग-इसके सात विकल्प होते हैं। यथा-१-७, 2-6, 3-5, 4-4, 5-3, 6-2, 7-1 / इस सात विकल्पों के साथ सात नरकों के 21 भंगों का गुणाकार करने पर कुल 147 भंग होते हैं। त्रिकसंयोगी 735 भंग--इसके 21 विकल्प होते हैं। यथा--१-१-६, 1-2-5, 1-3-4, 1-4-3, 1.5-2, 1-6-1, 6-1-1, 5-2-1, 2-1-5, 2-2-4, 2-3-3, 2-4-2, 2-5-1, 3-1-4, 3-2-3, 3-4-1, 3-3-2, 4-2-2, 4-3-1, 4-1-3, और 5-1-2 / इन 21 विकल्पों के साथ सात नरकों के त्रिकसंयोगी (पूर्वोक्तवत्) 35 भंगों का गुणाकार करने पर कुल 735 भंग होते हैं / ___ चतुःसंयोगी 1225 भंग-इसके 35 विकल्प होते हैं / यथा--१-१-१-५, 1-1-2-4, 1.2-1-4, 2-1-1-4, 1-1-3-3, 1-2-2-3, 2-1-2-3, 1-3-1-3, 2.2.1-3, 3-1-1-3, 1-1.4.2, 1-2-3-2, 2-1-3-2, 1-3-2-2, 2-2-2-2, 3-1-2.2, 1-4-1-2, 2-3-1-2, 3-2-1-2, 4-1-1-2, 1-1-5-1, 1-2-4-1, 2-1-4-1, 1-3-3-1, 2-2-3-1, 3-1-3-1, 1-4-2-1, 2-3-2-1, 3-2-2-1, 4-1-2-1, 1-5-1-1, 2-4-1-1, 3-3-1-1, 4-2-1-1 और 5-1-1-1 / इन 35 विकल्पों के साथ चतुःसंयोगी पूर्वोक्त 35 भंगों का गुणाकार करने पर कुल 1225 भंग होते हैं। Jain Education International For Private.& Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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