________________ 478] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 21 प्र.] भगवन् ! छह नैरयिक जीव, नैरयिक प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [21 उ.) गांगेय ! वे रत्नप्रभा में होते हैं, अथवा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं / (इस प्रकार ये असंयोगी 7 भंग होते हैं।) (द्विकसंयोगी 105 भंग)-(१) अथवा एक रत्नप्रभा में और पांच शर्कराप्रभा में होते हैं। (2) अथवा एक रत्नप्रभा में और पांच बालुकाप्रभा में होते हैं। अथवा (3-6) यावत् एक रत्नप्रभा में और पांच अध सप्तमपृथ्वी में होते हैं / (1) अथवा दो रत्नप्रभा में और चार शर्कराप्रभा होते हैं, अथवा (2-6) यावत् दो रत्नप्रभा में और चार अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं / (1) अथवा तीन रत्नप्रभा में और तीन शर्कराप्रभा में होते हैं / इस क्रम द्वारा जिस प्रकार पांच नैरयिक जीवों के द्विकसंयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार छह नै रथिकों के भी कहने चाहिए / विशेष यह है कि यहाँ एक अधिक का संचार करना चाहिए, यावत् अथवा पांच तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। (त्रिकसंयोगी 350 भंग)-(१) एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और चार बालुकाप्रभा में होते हैं / (2) अथवा एक रत्नप्रभा में एक शर्करप्रभा में और चार पंकप्रभा में होते हैं। इस प्रकार यावत् (3-5) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और चार अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं / (6) अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और तीन बालुकाप्रभा में होते हैं। इस क्रम से जिस प्रकार पांच नैरयिक जीवों के त्रिकसंयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार छह नै रयिक जीवों के भी त्रिकसंयोगी भंग कहने चाहिए। विशेष इतना ही है कि यहाँ एक का संचार अधिक करना चाहिए / शेष सब पूर्ववत् जानना चाहिए / (इस प्रकार विकसंयोगी कुल 350 भंग हुए।) (चतुष्कसंयोगी 350 भंग)--जिस प्रकार पांच नैरयिकों के चतुष्कसंयोगी भंग कहे गए, उसी प्रकार छह नैरयिकों के चतुःसंयोगी भंग जान लेने चाहिए / (पंचसंयोगी 105 भंग)-पांच नैरयिकों के जिस प्रकार पंचसंयोगी भंग कहे गए, उसी प्रकार छह नै रयिकों के पंचसंयोगी भंग जान लेने चाहिए, परन्तु इसमें एक नैरयिक का अधिक संचार करना चाहिए / यावत् अन्तिम भंग (इस प्रकार है-) दो बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है / (इस प्रकार पंचसंयोगी कुल 105 भंग हुए।) (षट्संयोगी 7 भंग)-(१) अथवा एक रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रभा में, यावत् एक तमःप्रभा में होता है, (2) अथवा एक रत्नप्रभा में, यावत् एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। (3) अथवा एक रत्नप्रभा में, यावत् एक पंकप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है / (4) अथवा एक रत्नप्रभा में, यावत् एक बालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में, यावत् एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। (5) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में, यावत् एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है / (6) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में यावत् एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है / (7) अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, यावत् एक अध सप्तमपृथ्वी में होता / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org