________________ नवम शतक : उद्देशक-३२] [471 बताए अनुसार रत्नप्रभा के 18 शर्कराप्रभा के 15, बालुकाप्रभा के 12, पंकप्रभा के 6, धूमप्रभा के 6 और तमःप्रभा के 3, ये कुल मिला कर चार नैरयिकों के द्विसंयोगी 63 भंग होते है / चार नैरयिकों के त्रिकसंयोगी भंग----१०५ होते हैं। यथा चार नैरयिकों के 1-1-2, 1-2-1 और 2-1-1 ये तीन भंग एक विकल्प के होते हैं, इनको रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा के साथ बालुकाप्रभा आदि आगे की पृथ्वियों के साथ संयोग करने पर 5 विकल्प होते हैं। पूर्वोक्त तीन भंगों के साथ गुणा करने पर 15 भंग होते हैं / इसी प्रकार इन तीन भंगों द्वारा रत्नप्रभा और वालुकाप्रभा का आगे की पृथ्वियों के साथ संयोग करने से कुल 12 भंग होते हैं / रत्नप्रभा और पंकप्रभा के साथ शेष पृथ्वियों का संयोग करने पर कुल ह भंग होते हैं / रत्नप्रभा और धूमप्रभा का संयोग करने पर 6 भंग, तथा रत्नप्रभा और तमःप्रभा के साथ संयोग करने पर तीन भंग होते हैं। इस प्रकार रत्नप्रभा के संयोग वाले कुल भंग 15+12+6+6+3= 45 होते हैं। पूर्वोक्त तीन विकल्पों द्वारा शर्कराप्रभा और बालुकाप्रभा के साथ संयोग करने पर 12, शर्कराप्रभा और पंकप्रभा के साथ संयोग करने पर , शर्कराप्रभा और धमप्रभा के साथ संयोग करने पर 6, तथा शर्कराप्रभा और तमःप्रभा का संयोग करने पर 3 भंग होते हैं / इस प्रकार शर्कराप्रभा के साथ संयोग वाले कुल भंग 12+6+6+3 =30 होते हैं। पूर्वोक्त तीन विकल्पों द्वारा बालुकाप्रभा और पंकप्रभा के साथ शेष पृथ्वियों का संयोग करने पर 6, बालुकाप्रभा और धमप्रभा के साथ 6 तथा बालुकाप्रभा और तमःप्रभा के साथ सयोग करने से 3 भंग होते हैं। इस प्रकार बालूकाप्रभा के साथ संयोग वाल कूल भंग 6+6+3= 18 होते हैं / पूर्वोक्त तीन विकल्पों द्वारा पंकप्रभा और धूमप्रभा के साथ शेष पृथ्वियों का संयोग करने पर ह, पंकप्रभा और तमःप्रभा के साथ संयोग वाले 3 भंग होते हैं / यों पंकप्रभा के संयोग वाले कूल भंग +3-12 होते हैं। पूर्वोक्त तीन विकल्पों द्वारा पंकप्रभा और तमःप्रभा के साथ संयोग करने पर तीन भंग होते हैं / पूर्वोक्त तीन विकल्पों के द्वारा धमप्रभा और तमःप्रभा के साथ संयोग वाले 3 भंग होते हैं / इस प्रकार त्रिकसंयोगी समस्त भंग 45+30+18+ +3 = 105 होते हैं।' उपर्युक्त पद्धति से चार नैरयिकों के चतुःसंयोगी 35 भंग होते हैं, जिनका उल्लेख मूलपाठ में कर दिया है / यों चार नैयिकों की अपेक्षा से असंयोगी 7, द्विकसंयोगी 63, त्रिकसंयोगी 105 और चतु:संयोगी 35, यो कुल 210 भंग होते हैं / पंच नरयिकों के प्रवेशनकभंग 20. पंच भंते ! मेरइया नेरइयप्पवेसणए णं पविसमाणा कि रयणप्पमाए होज्जा ? पुच्छा। गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा 7 / पाँच नरयिकों के द्विसंयोगी भंग अहवा एगे रयण०, चत्तारि सक्करप्पभाए होज्जा 1 / जाव अहवा एगे रयण०, चत्तारि अहेसत्तमाए होज्जा 6 / अहवा दो रयण तिष्णि सक्करप्पभाए होज्जा 1-7 / एवं जाव अहवा दो 1. (क) वियाहपत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा-१, पृ. 424 से 426 तक (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 442 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org