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________________ 470] শ্ৰাক্তামনি (1) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। (यह एक भंग) (1) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक धमप्रभा में एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है / (यह एक भंग हुप्रा / इस प्रकार रत्नप्रभा के संयोग वाले 4+3+2+1+3+2+1+2+1+1 - 20 भंग होते हैं / ) (1) अथवा एक शर्कराप्रभा में एक बालुकाप्रभा में एक पंकप्रभा में और एक धूमप्रभा में होता है। जिस प्रकार रत्नप्रभा का उससे आगे की पृथ्वियों के साथ संचार (योग) किया उसी प्रकार शर्कराप्रभा का उससे आगे की पृथ्चियों के साथ योग करना चाहिए यावत् अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तम:प्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है / (इस प्रकार शर्कराप्रभा के संयोग वाले 10 भंग होते हैं / ) (1) अथवा एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में होता है / (2) अथवा एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। (3) अथवा एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अध सप्तमपृथ्वी में होता है / (इस तरह बालुकाप्रभा के संयोग वाले 4 भंग हुए।) (1) अथवा एक बालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है अथवा एक पंकप्रभा में एक धूमप्रभा में, एक तम:प्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है / इस प्रकार सब मिल कर चतुःसंयोगी भंग 20+10+4+ 1 = 35 होते हैं / तथा चार नैर्रायक, प्राश्रयी असंयोगी 7, द्विकसंयोगी 63, त्रिकसंयोगी 105 और चतुःसंयोगी 35, ये सब 210 भंग होते हैं / ) विवेचन-चार नरयिकों के प्रवेशनक भंग-चार नैरपिकों के 1-3, 2-2,3-1 इस प्रकार के द्विकसंयोगी भंग तीन होते हैं। उनमें से रत्नप्रभा के साथ शेष पृथ्वियों का संयोग करने से 1-3 के 6, 2-2 के 6, और 3-1 के 6, यो 18 भंग हुए / इसी प्रकार शर्कराप्रभा के साथ पूर्वोक्त तीनों विकल्पों के 5+5+5= 15 भंग, इसी प्रकार बालुकाप्रभा के साथ पूर्वोक्त तीनों विकल्पों के 4+4+4=12, भंग होते हैं / तथा पंकप्रभा के साथ पूर्वोक्त तीनों विकल्प भी 3+3+3= भंग, एवं धूमप्रभा के साथ 2+2+2% 6 भंग तथा तमःप्रभा के साथ 1+1+1=3 भंग होते हैं। सभी मिलकर द्विकसंयोगी 63 भंग बताए गए। उनमें से रत्नप्रभा के साथ संयोग वाले 18 भंग ऊपर बता दिये गए हैं / इसी प्रकार शर्कराप्रभा के साथ आगे की पृथ्वियों का योग करने से 1-3 के 5 भंग होते हैं / यथा---एक शर्कराप्रभा में और तीन बालुकाप्रभा आदि में होते हैं / इसी तरह 2-2 के भी पाँच भंग होते हैं-दो शर्कराप्रभा में और दो वालुकाप्रभा आदि में होते हैं / यों शर्कराप्रभा के साथ संयोग वाले 5 भंग हुए / इसी प्रकार 3-1 के भी शर्कराप्रभा के संयोग वाले 5 भंग होते हैं / यथा--तीन शर्कराप्रभा में और एक बालुकाप्रभा आदि में होता है / इस प्रकार शर्कराप्रभा के साथ संयोग वाले कुल 15 भंग हुए / बालुकाप्रभा के साथ आगे की पृथ्वियों का संयोग करने से 4 भंग होते हैं, जो मूल पाठ में बतला दिये हैं / उन्हें पूर्वोक्त तीन विकल्पों से गुणा करने पर कूल 4+4+4= 12 भंग होते हैं / इसी प्रकार पंकप्रभा के साथ आगे की पृथ्वियों का संयोग करने पर तथा तीन विकल्पों से गुणा करने पर कुल 6 भंग होते हैं / इसी प्रकार धूमप्रभा के साथ 6 भंग तथा तमःप्रभा के साथ 3 भंग होते हैं / यों उत्तरोत्तर आगे की पृथ्वियों के साथ संयोग करने से ऊपर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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