________________ 462] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए होज्जा 7 / जाव अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा 8-6-10-11 / अहवा एगे बालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए होज्जा 12 / एवं जाव अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा, 13-14-15 / एवं एक्केक्का पुढवी छड्डेयव्वा जाव अहवा एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा, 16-17-18-19-20-21 / [17 प्र. भगवन् ! दो नै रयिक जीव, नैयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होते हैं, अथवा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में ? [17 उ.] गांगेय ! वे दोनों (1) रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होते हैं, अथवा (2-7) यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं / अथवा (1) एक रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होता है और एक शर्कराप्रभापृथ्वी में / अथवा (2) एक रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होता है, और एक वालुकाप्रभापृथ्वी में (3-4-5-6) / अथवा यावत् एक रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होता है, और एक अधःसप्तमपृथ्वी में / (अर्थात्-एक रत्नप्रभापृथ्वी में और एक पंकप्रभापृथ्वी में, एक रत्नप्रभापृथ्वी में और एक धूमप्रभापृथ्वी में, एक रत्नप्रभापृथ्वी में और एक तमःप्रभापृथ्वी में, या एक रत्नप्रभा में और एक तमस्तमःप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होता है / इस प्रकार रत्नप्रभा के साथ छह विकल्प होते हैं। (7) अथवा एक शर्कराप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होता है और एक बालुकाप्रभा में, अथवा (8-6-10-11) यावत् एक शर्कराप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होता है और एक अधःसप्तम पृथ्वी में / (अर्थात्-एक शर्कराप्रभा में और एक पंकप्रभा में; एक शर्कराप्रभा में और एक धूमप्रभा में; एक शर्कराप्रभा में और एक तमःप्रभा में; अथवा एक शर्कराप्रभा में और एक तमस्तमःप्रभा में उत्पन्न होता है / इस प्रकार शर्कराप्रभा के साथ पांच विकल्प हुए / ) (12) अथवा एक बालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में उत्पन्न होता है; (13-14-15) अथवा इसी प्रकार यावत् एक बालुकाप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है / (अर्थात्-अथवा एक बालुकाप्रभा में और एक धूमप्रभा में; या एक बालुकाप्रभा में और एक तमस्तमःप्रभा में उत्पन्न होता है। इस प्रकार बालुकाप्रभा के साथ चार विकल्प हुए)। (16-17-18-16-20-21) इसी प्रकार (पूर्व-पूर्व की) एक-एक पृथ्वी छोड़ देनी चाहिए; यावत् एक तमःप्रभा में और एक तमस्तमःप्रभा में उत्पन्न होता है / (अर्थात् --एक पंकप्रभा में और एक धूमप्रभा में ; एक पंकप्रभा में और एक तम:प्रभा में या एक पंकप्रभा में और एक तमस्तमःप्रभा में, यों तीन विकल्प पंकप्रभा के साथ तथा एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में या एक धूमप्रभा में और एक तमस्तमःप्रभा में ; यों दो विकल्प धूमप्रभा के साथ तथा एक तमःप्रभा में और एक तमस्तमःप्रभा में उत्पन्न होता है, यों एक विकल्प तमःप्रभा के साथ होता है)। विवेचन-दो नैरयिकों के प्रवेशनक-भंग-दो नै रयिकों के कुल प्रवेशनक-भंग 28 होते हैं / जिनमें से एक-एक नरक में दोनों नैरयिकों के एक साथ उत्पन्न होने की अपेक्षा से 7 भंग होते हैं। दो नरकों में एक-एक नैरयिक की एक साथ उत्पत्ति होने की अपेक्षा से द्विकसंयोगी कुल 21 भंग होते हैं, जिनमें रत्नप्रभा के साथ 6, शर्कराप्रभा के साथ 5, बालुकाप्रभा के साथ 4, पंकप्रभा के साथ 3, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org