________________ [461 नवम शतक : उद्देशक-३२] नरयिक-प्रवेशनक निरूपण 15. नेरइयपवेसणए गं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गंगेया ! सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा--रयणप्पभापुढविनेरइयपवेसणए जाव अहेसत्तमापुढविनेरइयपवेसणए। [15 प्र.] भगवन् ! नैरपिक-प्रवेशनक कितने प्रकार का कहा गया है ? [15 उ.] गांगेय ! (नैरयिक-प्रवेशनक) सात प्रकार का कहा गया है, जैसे कि रत्नप्रभापृथ्वी नैरयिक-प्रवेशनक यावत् अधःसप्तमपृथ्वी नैरयिक-प्रवेशनक / विवेचन-नैरयिक-प्रवेशनक सात ही क्यों ? ---नरक सात हैं और नैयिक जीव रत्नप्रभा आदि नरकों में से किसी भी एक नरक में उत्पन्न होता है, अतः उसके सात ही प्रवेशनक हो सकते हैं / यथा-रत्नप्रभा-प्रवेशनक, शर्कराप्रभा-प्रवेशनक आदि / ' एक नरयिक के प्रवेशनक-भंग 16. एगे भंते ! नेरइए नेरइयपवेसणए णं पविसमाणे किं रयणप्पभाए होम्जा, सक्करप्पभाए होज्जा, जाव अहेसत्तमाए होज्जा ? गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा 7 // |16 प्र. भते ! क्या एक नैरयिक जीव नैरयिकप्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुआ रत्नप्रभापृथ्वी में होता है, या शर्कराप्रभा-पृथ्वी में होता है अथवा यावत् अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है ? [16 उ.] गांगेय ! वह नैरयिक रत्नप्रभा-पृथ्वी में होता है, या यावत् अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है। विवेचन-एक नैरथिक के असंयोगी सात प्रवेशनक भंग–यदि एक नारक रत्नप्रभा आदि नरकों में उत्पन्न (प्रविष्ट) हो तो उसके सात विकल्प होते हैं। जैसे कि--(१) या तो वह रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होता है, (2) या शर्कराप्रभा-पृथ्वी में, (3 से 7) या इसी तरह आगे एक-एक पृथ्वी में यावत् अथवा अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है / इस प्रकार असंयोगी सात भंग होते हैं / उत्कृष्ट प्रवेशनक के सिवाय सभी नरकभूमियों में असंयोगी सात ही विकल्प होते हैं। दो नरयिकों के प्रवेशनक भंग-- 17. दो भंते ! नेरइया नेरइयपवेसणए णं पविसमाणा कि रयणप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए होज्जा ? गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा / / अहवा एगे रयणप्पभाए हुज्जा, एगे सक्करप्पभाए होज्जा 1 / अह्वा एगे रयणप्पभाए, एगे बालुयप्पभाए होज्जा 2 / जाव एगे रयणप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा, 3-4-5-6 / अहवा एगे 1. वियाहपण्णतिसुत्तं भा. 1 (मूलपाठ-टिप्पण), पृ. 422 2 (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 442 (ख) भगवती. (पं. घेवरचंदजी) भा. 4, पृ. 1619. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org