________________ 460 [प्यास्याप्रज्ञप्तिसूत्र 12. संतरं भंते ! जोइसिया चयंति० ? पुच्छा। गंगेया ! संतरं पि जोइसिया चयंति, निरंतरं पि जोइसिया चयंति / [12 प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्क देवों का च्यवन (मरण) सान्तर होता है या निरन्तर ? [12 उ.] गांगेय ! ज्योतिष्क देवों का च्यवन सान्तर भी होता है और निरन्तर भी / 13. एवं जाव वेमाणिया वि। [13] इसी प्रकार यावत् वैमानिक तक (च्यवन के सम्बन्ध में) जान लेना चाहिए / विवेचन-उपपात-उद्वर्तन : परिभाषा—जीवों के जन्म या उत्पत्ति को उपपात और मरण या च्यवन को उद्वर्तन कहते हैं / वैमानिक और ज्योतिष्क देवों का मरण 'च्यवन' कहलाता है। नारकादि का मरण उद्वर्त्तन / सान्तर और निरन्तर-जीवों की उत्पत्ति आदि में समय आदि काल का अन्तर (व्यवधान) हो तो वह 'सान्तर' कहलाता है, जिसको उत्पत्ति आदि में समय आदि काल का अन्तर (व्यवधान) नहीं होता, वह निरन्तर' कहलाता है / एकेन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति और मृत्यु--ये जीव प्रतिसमय उत्पन्न होते और प्रतिसमय मरते हैं / इसलिए उनकी उत्पत्ति और उद्वर्तन सान्तर नहीं, निरन्तर होता है। एकेन्द्रिय के सिवाय शेष सभी जीवों की उत्पत्ति और मृत्यु में अन्तर सम्भव है। इसलिए वे सान्तर एवं निरन्तर, दोनों प्रकार से उत्पन्न होते और मरते हैं।' पासावच्चिज्जे-पार्वापत्य अर्थात्--पार्श्वनाथ भगवान् के सन्तानीय-शिष्यानुशिष्य / प्रवेशनक : चार प्रकार-- 14. कइविहे णं भंते ! पवेसणए पण्णते? .. गंगेया ! चउब्धिहे पवेसणए पण्णत्ते, तं जहा–नेरइयपवेसणए तिरिक्खजोणियपवेसणए मणुस्सपवेसणए देवपवेसणए। [14 प्र.भगवन् ! प्रवेशनक कितने प्रकार का कहा गया है ? [14 उ.] गांगेय ! प्रवेशनक चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार-(१) नैरयितप्रवेशनक (2) तिर्यग्योनिक-प्रवेशनक, (3) मनुष्य-प्रवेशनक और (4) देव-प्रवेशनक / विवेचन–प्रवेशनक-एक गति से दूसरी गति में प्रवेश करना-जाना, प्रवेशनक है। अर्थात्-एक गति से मर कर दूसरी गति में उत्पन्न होना प्रवेशनक कहलाता है। गतियाँ चार होने से प्रवेशनक भी चार प्रकार का ही है। --- -- -- - - - 1. भगवतीसूत्र (अर्थ-विवेचन) भा 4 (पं घेवरचंदजी), पृ 1617 2 वही, पृ 1617 3. गत्यन्तरादुवृत्तस्य विजातीयगतो जीवस्य प्रवेशनं उत्पाद इत्यर्थः / -~भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 442 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org