________________ नवम शतक : उद्देशक-३२] [ 459 5. [1] संतरं भंते ! पुढविकाइया उववज्जति, निरंतरं पुढविकाइया उववज्जति ? गंगेया ! नो संतरं पुढविकाइया उपवति, निरंतरं पुढविकाइया उववज्जंति / [5-1 प्र. भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर उत्पन्न होते हैं ? [5-1 उ.] गांगेय ! पृथ्वी कायिक जीव सान्तर उत्पन्न नहीं होते; निरन्तर उत्पन्न होते हैं / [2] एवं जाव वणस्सइकाइया। [5-2] इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीवों तक जानना चाहिए / 6. बेइंदिया जाव वेमाणिया, एते जहा रइया / / [6] द्वीन्द्रिय जीवों से लेकर यावत् वैमानिक देवों तक नैरयिकों के समान (उत्पत्ति) जानना चाहिए। 7. संतरं भंते ! नेरइया उन्वटेंति, निरंतर नेरइया उव्वति ? गंगेया ! संतरं पि नेरइया उव्वति , निरंतरं पि नेरइया उन्वति / 17 प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव सान्तर उत्तित होते (मरते) हैं या निरन्तर ? [7 उ.] गांगेय ! नैरयिक जीव सान्तर भी उत्तित होते हैं और निरन्तर भी। 8. एवं जाव थणियकूमारा / [8] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक (के उद्वर्तन के सम्बन्ध में) जानना चाहिए / 9. [1] संतरं भंते ! पुढविक्काइया उव्वटंति० ? पुच्छा है। गंगेया ! णो संतरं पुढविक्काइया उव्वति, निरंतरं पुढविक्काइया उन्वति / [6-1 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव सान्तर उत्तित होते हैं या निरन्तर ? [1-1 उ.] गांगेय ! पृथ्वीकायिक जीवों का उद्वर्तन (मरण) सान्तर नहीं होता, निरन्तर होता रहता है। [2] एवं जाव वणस्सइकाइया नो संतरं, निरंतरं उव्वति / {6-2] इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीवों तक (के उद्वर्तन के विषय में) जानना चाहिए / ये सान्तर नहीं, निरन्तर उत्तित होते हैं। 10, संतरं भंते ! बेइंदिया उब्वटेंति, निरंतरं बैंदिया उन्वति ? गंगेया ! संतरं पि बेइंदिया उन्वदंति, निरंतरं पि बेइंदिया उव्वति / [10 प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों का उद्वर्त्तन (मरण) सान्तर होता है या निरन्तर ? [10 उ.] गांगेय ! द्वीन्द्रिय जीवों का उद्वर्तन सान्तर भी होता है और निरन्तर भी। 11. एवं जाव वाणमंतरा। [11] इसी प्रकार यावत् वाणव्यन्तर तक जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org