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________________ बत्तीसइमो उद्देसओ : 'गंगेय' बत्तीसवाँ उद्देशक : 'गांगेय' उपोद्घात-- 1. तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नगरे होत्था। वण्णओ। दूतिपलासे चेइए / सामी समोसढे / परिसा निग्गया। धम्मो कहिओ / परिसा पडिगया। [1] उस काल, उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था / (उसका वर्णन जान लेना चाहिए)। बहाँ द्युतिपलाश नाम का चैत्य (उद्यान) था। (एक बार) वहाँ भगवान् महावीरस्वामी (पधारे), (उन) का समवसरण लगा। परिषद् बन्दन के लिये निकली। (भगवान् ने) धर्मोपदेश दिया / परिषद् वापिस लौट गई / 2. तेणं कालेणं तेणं समएणं पासानच्चिज्जे गंगेए नाम अणगारे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवाच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं वयासी [2] उस काल उस समय में पापित्य (पुरुषादानीय भगवान पार्श्वनाथ के शिष्यानुशिष्य) गांगेय नामक अनगार थे। जहाँ श्रमण भगवान् महावीर थे, वहाँ वे पाए और श्रमण भगवान् महावीर के न अतिनिकट और न अतिदूर खड़े रह कर उन्होंने श्रमण भगवान् महावीर से इस प्रकार पूछाचौवीस दण्डकों में सान्तर-निरन्तर-उपपात-उद्वर्तन-प्ररूपणा-- 3. संतरं भंते ! नेरइया उववज्जति, निरंतरं नेरइया उववज्जति ? गंगेया ! संतरं पि नेरइया उववज्जंति, निरंतरं पि नेरइया उववज्जति / [3 प्र.] भगवन् ! नैरयिक सान्तर (सामयिक व्यवधान सहित) उत्पन्न होते हैं या निरन्तर (लगातार-बीच में समय के व्यवधानबिना) उत्पन्न होते हैं? [3 उ.] हे गांगेय ! नैरयिक सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी। 4. [1] संतरं भंते ! असुरकुमारा उवधज्जंति, निरंतरं असुरकुमारा उववज्जति ? गंगेया! संतरं पि असुरकुमारा उववज्जंति, निरंतरं पि असुरकुमारा उववज्जति / [4-1 प्र.] भगवन् ! असुरकुमार सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ? [4-1 उ.] गांगेय ! वे सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी। [2] एवं जाव थणियकुमारा। [4-2] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार तक जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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