________________ नवम शतक : उद्देशक-३१] [ 457 होता है या पुरुषवेदी अथवा पुरुषनपुंसकवेदी होता है और अवेदी को अवधिज्ञान होता है तो वह क्षीणवेदी को होता है, उपशान्तवेदी को नहीं होता, क्योंकि आगे इसी अवधिज्ञानी के केवलज्ञान की उत्पत्ति का कथन विवक्षित है / (4) कषाय-कषायक्षय न होने की स्थिति में अवधिज्ञान प्राप्त होता है तो वह जीव सकषायी होता है और कषायक्षय होने पर अवधिज्ञान होता है तो अकषायी होता है। यदि अक्षीणकषायी अवधिज्ञान प्राप्त करता है तो चारित्रयुक्त होने से चार संज्वलन कषायों में होता है, जब क्षपकश्रेणिवर्ती होने से संज्वलन क्रोध क्षीण हो जाता है, तब अवधिज्ञान प्राप्त होता है, तो संज्वलनमानादि तीन कषाय युक्त होता है, जब क्षपकणि की दशा में संज्वलन क्रोध-मान क्षीण हो जाता है तो संज्वलन माया-लोभ से युक्त होता है और जब तीनों क्षीण हो जाते हैं तो वह अवधिज्ञानी एकमात्र संज्वलन लोभ से युक्त होता है।' // नवम शतक : इकतीसवाँ उद्देशक समाप्त / 1 भगवती. अ वत्ति, पत्र 438 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org