________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसून 43 उ. हे गौतम ! जैसे (सू. 30 में) असोच्चाकेवली के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार यहाँ भी जानना चाहिए / यावत् वे अढाई द्वीप-समुद्र के एक भाग में होते हैं, यहाँ तक कना चाहिए / 44. ते ण भंते ! एगसमएणं केवतिया होज्जा ? गोयमा! जहन्नेण एकको वा दो वा तिणि वा, उक्कोसेणं अट्ठसयं–१०८ / से तेणठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-सोच्चा णं केवलिस्स वा जाव केवलिउवासियाए वा जाव अत्थेगतिए केवलनाणं उप्पाडेज्जा, अत्थेगतिए केवलनाण नो उप्पाडेज्जा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाब विहरइ। // नवमसयस्स इगतीसइमो उद्देसो // (44 प्र.] भगवन् ! वे सोच्चाकेवली एक समय में कितने होते हैं ? [44 उ.! गौतम / वे एक समय में जघन्य एक, दो या तीन होते हैं और उत्कृष्ट एक सौ आठ होते हैं। उपसंहार-1 इसीलिए हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि केवली यावत् केवलि-पाक्षिक की उपासिका से धर्मप्रतिपादक वचन सुन कर यावन् कोई जीव केवलज्ञान-केबलदर्शन प्राप्त करता है और कोई प्राप्त नहीं करता। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है; ऐसा कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरण करते हैं। विवेचन-सोच्चा अवधिज्ञानी के लेश्या आदि का निरूपण----सू. 34 से 44 तक में तथारूप अवधिज्ञानी के लेश्या, ज्ञान, योग, उपयोग, संघयण, संठाण, उच्चत्व, आयुष्य, वेद, कषाय, अध्यवसान, उपदेश, प्रव्रज्यादान, सिद्धि, स्थान एवं एक समय में कितनी संख्या आदि के सम्बन्ध में असोच्चाकेवली के क्रम से ही प्रतिपादन किया गया है। असोच्चा से सोच्चा अबधिज्ञानी की कई बातों में अन्तर-(१) लेश्या-असोच्चा अवधिज्ञानी में तीन ही विशुद्ध लेश्याएं बताई गई हैं, जबकि सोच्चा अवधिज्ञानी में छह लेश्याएं बताई गई हैं। उसका रहस्य यह है कि यपि तीन प्रशस्त भावलेश्या होने पर ही अवधिज्ञान प्राप्त द्रव्यलेश्या की अपेक्षा से वह सम्यक्त्व श्रुत की तरह छह लेश्याओं में होता है, क्योकि सोच्चाकेवली का अधिकार होने से मनुष्य ही उसका अधिकारी है। इसलिए उक्त लेश्या वाले द्रव्यों तथा उनकी परिणति की अपेक्षा से छह लेश्याओं का कथन किया गया है। (2) ज्ञान-तेले-तेले की विकट तपस्या करने वाले माधु को अवधिज्ञान उत्पन्न होता है और अवधिज्ञानी में प्रारम्भिक दो ज्ञान (मति-श्रुतज्ञान) अवश्य होने से उसे तीन ज्ञानों मे बतलाया गया है। जो मन पर्यायज्ञानी होता है, उसके अवधिज्ञान उत्पन्न होने पर अवधिज्ञानी चार ज्ञानों से युक्त हो जाता है। (3) वेद--- यदि अक्षीणवेदी को अवधिज्ञान की उत्पत्ति हो तो वह सवेदक होता है, उस समय या तो वह स्त्रीवेदी तथापि 1. वियाहपण्णत्तिसत्तं भा.१ (मलपाठ-टिप्पण), पृ. 418-420 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org