________________ नवम शतक : उद्देशक-३१] [2] तस्स णं भंते ! सिस्सा वि पवावेज्ज वा, मुडावेज्ज वा ? हंता, पवावेज्ज वा मुडावेज्ज वा / 642-2 प्र. भगवन् ! उन सोच्चाकेवली के शिष्य किसी को प्रवजित करते हैं या मूण्डित करते हैं ? [41-2 उ.] हाँ गौतम ! उनके शिष्य भी प्रवजित करते हैं और मुण्डित करते हैं। [3] तस्स णं भंते ! पसिस्सा वि पवावेज्ज वा मुडावेज्ज वा ? हंता, पवावेज्ज वा मडावेज्ज वा / 41-3 प्र. भगवन् ! क्या उन श्रुत्वाकेवली के प्रशिष्य भी किसी को प्रवजित और मुण्डित करते हैं ? [41-3 उ.] हाँ गौतम ! उनके प्रशिष्य भी प्रव्रजित करते हैं और मुण्डित करते हैं / 42. [1] से णं भंते ! सिज्झति बुज्झति जाव अंतं करेइ ? हंता, सिज्झाइ जाव अंतं करेइ / |42-1 प्र. भगवन् ! वे श्रुत्वाकेवली सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं ? [42-1 उ.] हाँ गौतम ! वे सिद्ध होते हैं, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं / [2] तस्स णं भंते ! सिस्सा वि सिझति जाव अंतं करेंति ? हंता, सिझंति जाव अंतं करेंति / [42-2 प्र भंते ! क्या उन सोच्चाकेवली के शिष्य भी सिद्ध होते हैं यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं ? [42-2 उ.] हाँ, गौतम ! वे भी सिद्ध, बुद्ध होते हैं, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं। [3] तस्स णं भंते ! पसिस्सा वि सिझति जाव अंत करेंति ? एवं चेव जाव अंतं करेंति / [42-3 प्र. भगवन् ! क्या उनके प्रशिष्य भी सिद्ध होते हैं, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं ? 42-3 उ. हां, गौतम ! वे भी सिद्ध-बुद्ध हो जाते हैं, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं। 43. से णं भंते ! कि उड्ढं होज्जा ? जहेव असोच्चाए (सु. 30) जाव तदेक्कदेसभाए होज्जा। [43 प्र. भंते ! वे सोच्चाकेवली ऊर्ध्वलोक में होते हैं, अधोलोक में होते हैं और तिर्यग्लोक में भी होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org