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________________ 454] व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [38-2 प्र.] भगवन् ! यदि वह अकषायी होता है तो क्या उपशान्तकषायी होता है या क्षीणकषायी ? [38-2 उ. गौतम ! वह उपशान्तकषायी नहीं होता, किन्तु क्षीणकषायो होता है / [3] जइ सकसाई होज्जा से गं भंते ! कतिसु कसाएसु होज्जा ? गोयमा ! चउसु वा, तिसु वा, दोसु वा, एक्कम्मि वा होज्जा। चउसु होज्जमाणे चउसु संजलणकोह-माण-माया-लोभेसु होज्जा, तिसु होज्जमाणे तिसु संजलणमाण-माया-लोभेसु होज्जा, दोसु होज्जमाणे दोसु संजलणमाया-लोभेसु होज्जा, एगम्मि होज्जमाणे एगम्मि संजलणे लोभे होज्जा। |38-3 प्र. भगवन् ! यदि वह सकषायी होता है तो कितने कषायो में होता है ? 138-3 उ.| गौतम ! वह चार कषायों में, तीन कषायों में, दो कषायों में अथवा एक कषाय मे होता है। यदि वह चार कषायो मे होता है, तो सज्वलन क्रोध, मान में होता है। यदि तीन कषायों में होता है तो संज्वलन मान, माया और लोभ में होता है। यदि वह दो कषायों में होता है तो संज्वलन माया और लोभ में होता है और यदि वह एक कषाय में होता है तो एक संज्वलन लोभ में होता है। 36, तस्स णं भंते ! केवतिया अज्ावसाणा पण्णता? गोयमा ! असंखेज्जा, एवं जहा असोच्चाए (सु. 25-26) तहेव जाव केबलवरनाण-दंसणे समुप्पज्जइ (सु. 26) / 136 प्र.] भंते ! उस (तथारूप) अवधिज्ञानी के कितने अध्यवसाय बताए गए हैं ? {36 उ.] गौतम ! उसके असंख्यात अध्यवसाय होते हैं / जिस प्रकार (सू.२५, 26 में) असोच्चा केवली के अध्यवमाय के विषय में कहा गया, उसी प्रकार यहाँ भी ‘सोच्चा केवली' के लिए यावत् उसे केवलज्ञान-केवलदर्शन उत्पन्न होता है, यहाँ तक कहना चाहिए। सोच्चा केवली द्वारा उपदेश, प्रवज्या, सिद्धि आदि के सम्बन्ध में 40. से णं भंते ! केवलिपण्णत्तं धम्म आधविज्जा वा, घरूविज्जा वा ? हंता, आधविज्ज वा, पण्णवेज्ज वा, परवेज्ज वा। |40 प्र.| भते ! वह 'सोच्चा केवली' केवलि-प्ररूपित धर्म कहते हैं, बतलाते हैं या प्ररूपित करते हैं ? 40 उ. हाँ गौतम ! वे केवलि-प्ररूपित धर्म कहते हैं. बतलाते हैं और उसकी प्ररूपणा भी कहते हैं। 41. [1] से णं भंते ! पवावेज्ज वा मुडावेज्ज वा ? हंता, गोयमा ! पवावेज्ज वा, मुडावेज्ज वा / [41-1 प्र| भगवन् ! वे सोच्चाकेवली किसी को प्रव्रजित करते हैं या मुण्डित करते हैं ? |41-1 उ.] हाँ, गौतम ! वे प्रवजित भी करते हैं, मुण्डित भी करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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