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________________ नवम शतक : उद्देशक-३१] बोधि (सम्यग्दर्शन) प्राप्त करता है, मुण्डित हो कर अंगारबास मे शुद्ध अनगारिता को स्वीकार करता है, शुद्ध ब्रहाचर्यवास धारण करता है, शुद्ध संयम द्वारा संयम --यतना करता है, शुद्ध संवर से संवृत होता है, शुद्ध प्राभिनिबोधिक ज्ञान उत्पन्न करता है, यावत् शुद्ध मनःपर्यवज्ञान तथा केवलज्ञान उत्पन्न करता है? 13-1 उ.) गौतम ! केवली यावत केबलि-पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना ही कोई जीव के बलि-प्ररूपित धर्म-श्रवण का लाभ पाता है, कोई जीव नहीं पाता , कोई जीव शुद्ध बोधिलाभ प्राप्त करता है, कोई नहीं प्राप्त करता : , कोई जीव मुण्डित हो कर अगारवास से शुद्ध अनगारधर्म में प्रवजित होता है और कोई प्रजित नहीं होना , कोई जीव शुद्ध ब्रह्मचर्यवाम को धारण करता है और कोई नहीं धारण करता 4, कोई जीव शुद्ध संयम से संयम ----यतना करता है और कोई नहीं करता 5, कोई जीव शुद्ध सवर से संबन होता है और कोई जीत्र संबत नहीं होता 6, इसी प्रकार कोई जीव आभिनिवोधिकज्ञान का उपार्जन करता है और कोई उपार्जन नहीं करता 7, कोई जीव यादत मन पर्यवज्ञान का उपार्जन करता है और कोई नहीं करता 8-1-10, कोई जीव केवलज्ञान का उपार्जन करता है और कोई नहीं करता 11 / [2] से केणढेणं भंते ! एवं बुच्चइ असोच्चा णं तं चेव जाव अस्थेगतिए केवलनाणं नो उप्पाडेज्जा? __ गोयमा ! जस्स णं नाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे नो कडे भवइ 1, जस्स णं दरिसणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे नो कडे भवइ 2, जस्स णं धम्मंतराइयाणं कम्माणं खओवसमे नो कडे भवइ 3, एवं चरित्तावरणिज्जाणं 4, जयणावरणिज्जाणं 5, अज्ज्ञवसाणावरणिज्जाणं 6, आभिणिबोहियनाणावरणिज्जाणं 7, जाव मणपज्जवनाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे नो कडे भवइ 8-910, जस्स णं केवलनाणावरणिज्जाणं जाव खए नो कडे भवइ 11, से णं असोच्चा केवलिस्स वा जाद' केवलिपन्नतं धम्मं नो लभेज्जा सवणयाए, केवलं बोहि नो बुज्झज्जा जाब केवलनाणं नो उम्पाडेज्जा / जस्स णं नाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे कड़े भवति 1, जस्स णं दरिसणावरणिज्जाणं कम्माण खओवसमे कडे भवइ 2, जस्स णं धम्मंतराइयाणं 3, एवं जाव जस्स णं केवलनाणावरणिज्जाणं कम्माणं खए कडे भवइ 11, से णं असोच्चा केवलिस्स वा जाव केवलिपन्नत्तं धम्म लभेज्जा सवणयाए 1, केवलं बोहि बुज्झज्जा 2, जाव केवलणाणं उप्पाडेज्जा 11 / 13-2 प्र. भगवन् ! इस (पूर्वोक्त) कथन का क्या कारण है कि कोई जीव केवलिप्ररूपित धर्मश्रवण-लाभ करता है, यावत् केवलज्ञान का उपार्जन करता है और कोई यावत् केवलज्ञान का नहीं करता? 113-2 उ.| गौतम ! (1) जिस जीव ने ज्ञानावरणीयकर्म का अयोपशम नहीं किया, (2) जिस जीव ने दर्शनावरणीय (दर्शनमोहनीय) कर्म का क्षयोपशम नहीं किया, (3) धर्मान्तरायिक 1 जाव' शब्द से यहाँ 'श्रतान' और 'अवधिज्ञान' पद जोड़ना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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