________________ 440 व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 12. असोच्चा णं भंते ! केलिस्स वा जाव तप्पक्खिय उवासियाए वा केवलनाणं उप्पाडेज्जा ? एवं चेव, नवरं केवलनाणावरणिज्जाणं कम्माणं खए भाणियब्बे, सेसं तं चेव / से तेणठेणं गोयमा! एवं बुच्चइ जाव केवलनाणं उप्पाडेज्जा। [12 प्र.] भगवन् ! केवली आदि से सुने बिना ही क्या कोई जीव केवलज्ञान उपार्जन कर लेता है ? 12 उ.] पूर्ववन् यहाँ भी कहना चाहिए / विशेष इतना ही है कि यहाँ केवलज्ञानावरणीय कर्मों का क्षय कहना चाहिए / शेष सब कथन पूर्ववत् है / इसीलिए हे गौतम ! यह कहा जाता है कि यावत् केवलज्ञान का उपार्जन करता / विवेचन-आभिनिबोधिक आदि ज्ञानों के उत्पादन के सम्बन्ध में--निष्कर्ष यह है कि श्राभिनिबोधिक, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवलज्ञान, इन पाँच ज्ञानों का उपार्जन केवली आदि से सुने बिना भी वही कर सकता है, जिसके उस-उस ज्ञान के प्रावरणरूप कर्मों का क्षयोपशम तथा क्षय हो गया हो, अन्यथा नहीं कर सकता। केवली आदि से ग्यारह बोलों को प्राप्ति और अप्राप्ति 13 [1] असोच्चा णं भंते ! केलिस्स वा जाव तप्पक्खियउवासियाए व केवलिपनत्तं धम्म लभेजा सवणयाए 1?, केवलं बोहि बुझज्जा 2 ? केवलं मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वएज्जा 3 ?, केवलं बंभचेरवासं आवसेज्जा 4 ?, केवलेण संजमेण संजमेज्जा 5 ?, केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा 6 ?, केवलं आभिणिबोहियनाणं उप्पाडेज्जा 7 ?, जाव केवल मणपज्जवनाणं उप्पाडेज्जा 10?, केवलनाणं उप्पाडेज्जा 11?, गोयमा ! असोच्चा णं केवलिस्स वा जाव उवासियाए वा अत्थेगतिए केवलिपन्नत्तं धम्म लभेज्जा सवणयाए, अत्थेगतिए केवलिपन्नत्तं धम्मं नो लभेज्जा सवणयाए 1, अत्थेगतिए केवलं बोहिं बुझज्जा, अत्थेगतिए केवलं बोहि णो बुज्झज्जा 2; अत्थेगतिए केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पवएज्जा, अत्थेगतिए जाव नो पन्वएज्जा 3; अत्थेगतिए केवलं बंभचेरवासं आवसेज्जा, अत्थेगतिए केवलं बंभचेरवास नो आवसेज्जा 4; अत्थेगतिए केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, अत्थेगतिए केवलेणं संजमेणं नो संजमेज्जा 5; एवं संवरेण वि 6; अत्थेगतिए केवलं आभिणिबोहियनाणं उप्पाडेज्जा, अत्थेगतिए जाव नो उप्पाडेज्जा 7; एवं जाव' मणपज्जवनाण 8-9-10; अत्थेगतिए केवलनाणं उप्पाडेज्जा, अत्थेगतिए केवलनाणं नो उप्पाडेज्जा 11 / 13-1 प्र. भगवन ! केवली यावत् केवलि-पाक्षिक-उपासिका (इन दस) के पास से धर्मश्रवण किये बिना ही क्या कोई जीव केवलि-प्ररूपित धर्म-श्रवण-लाभ करता है; शुद्ध 1. 'जाव' शब्द से यहाँ 'श्रुतज्ञान' और 'अवधिज्ञान' पद जोड़ना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org