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________________ नवम शतक : उद्देशक-३१] [439 [8-1 प्र.] भगवन् ! केवली आदि से सुने विना ही क्या कोई जीव शुद्ध आभिनिबोधिकज्ञान उपार्जन कर लेता है ? [8-1 उ.] गौतम ! केवली आदि से सुने बिना कोई जीव शुद्ध आभिनिबोधिक ज्ञान प्राप्त करता है और कोई जीव यावत् नहीं प्राप्त करता। [2] से केणठेणं जाव नो उप्पाडेन्जा? गोयमा ! जस्स गं आभिणिबोहियनाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे कडे भवइ से गं असोच्चा केवलिस्स वा जाव केवलं आभिणिबोहियनाणं उप्पाडेज्जा, जस्स णं आभिणिबोहियनाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे नो कडे भवइ से णं असोच्चा केवलिस्स वा जाव केवलं आभिणिबोहियनाणं नो उप्पाडेज्जा, से तेणठेणं जाव नो उप्पाडेज्जा / [8.2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से यावत् नहीं प्राप्त करता? [8-2 उ.] गौतम ! जिस जीव ने आभिनिबोधिक-ज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम किया है, वह केवली आदि से सुने बिना ही शुद्ध प्राभिनिबोधिकज्ञान उपार्जन कर लेता है, किन्तु जिसने प्राभिनिबोधिक-ज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम नहीं किया है, वह केवली आदि से सुने बिना शुद्ध आभिनिबोधिकज्ञान का उपार्जन नहीं कर पाता / हे गौतम ! इसीलिए कहा जाता है कि कोई जीव यावत् शुद्ध आभिनिबोधिकज्ञान उपार्जन कर लेता है और कोई नहीं कर पाता। 9. असोच्चा णं भंते ! केवलि जाव केवलं सुयनाणं उप्पाडेज्जा ? एवं जहा आभिणिबोहियनाणस्स वत्तन्वया भणिया तहा सुयनाणस्स वि भाणियन्वा, नवरं सुयनाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे भाणियन्वे / [9 प्र.] भगवन् ! केवली प्रादि से सुने विना हो क्या कोई जीव श्रुतज्ञान उपार्जन कर लेता है ? [6 उ.] (गौतम ! ) जिस प्रकार प्राभिनिबोधिकज्ञान का कथन किया गया, उसी प्रकार शुद्ध श्रुतज्ञान के विषय में भी कहना चाहिए। विशेष इतना ही है कि यहाँ श्रुतज्ञानावरणीयकर्मों का क्षयोपशम कहना चाहिए। 10. एवं चेव केवलं ओहिनाणं भाणियन्वं; नवरं ओहिणाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे भाणियब्वे / [10] इसी प्रकार शुद्ध अवधिज्ञान के उपार्जन के विषय में कहना चाहिए / विशेष यह है कि यहाँ अवधिज्ञानावरणीयकर्म का क्षयोपशम कहना चाहिए / 11. एवं केवलं मणपज्जवनाणं उप्पाडेज्जा, नवरं मणपज्जवणाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे भाणियब्वे / [11] इसी प्रकार शुद्ध मनःपर्ययज्ञान के उत्पन्न होने के विषय में कहना चाहिए / विशेष इतना ही है कि मनःपर्ययज्ञानावरणकर्म के क्षयोपशम का कथन करना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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