________________ [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [2] से केणछैणं जाव नो पन्वएज्जा ? गोयमा ! जस्स ण धम्मतराइयाणं खओवसमे कडे भवति से णं असोच्चा केवलिस्स वा जाव केवलं मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पवएज्जा, जस्स णं धम्मंतराइयाणं कम्माणं खओवसमे नो कडे भवति से णं असोच्चा केवलिस्स वा जाव मुडे भवित्ता जाव णो पम्वएज्जा, से तेणठेणं गोयमा ! जाव नो पच्चएज्जा / [4-2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से यावत् कोई जीव प्रवजित नहीं हो पाता? 4-2 उ.] गौतम ! जिस जीव के धर्मान्तरायिक कर्मों का क्षयोपशम किया हुआ है. वह जीव केवली आदि से सुने बिना ही मुण्डित होकर अगारवास से अनगारधर्म में प्रवजित हो जाता है, किन्तु जिस जीव के धर्मान्तरायिक कर्मों का क्षयोपशम नहीं हुआ है, वह मुण्डित होकर अगारवास से अनमा रधर्म में प्रवजित नहीं हो पाता। इसी कारण से हे गौतम ! यह कहा गया है कि यावत् वह (कोई जीव) प्रव्रज्या ग्रहण नहीं कर पाता। विवेचन- केवलं मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पन्वएज्जा : भावार्थ--मुण्डित होकर गृहवासत्याग करके शुद्ध या सम्पूर्ण प्रनगारिता में प्रबजित हो पाता है, अर्थात् अनगारधर्म में दीक्षित हो पाता है।' धम्मतराइयाणं कम्माणं.-..धर्म में अर्थात चारित्र अंगीकाररूप धर्म में अन्तराय-विध वाले कर्म धर्मान्तरायिक कर्म अर्थात्-वीर्यान्तराय एवं विविध चारित्रमोहनीय कर्म / केवली आदि से ब्रह्मचर्य-वास का धारण-अधारण 5. [1] असोच्चा णं भंते ! केलिस्स वा जाव उवासियाए वा केवलं बंभचेरवासं आवसेज्जा? गोयमा ! असोच्चा णं केवलिस्स वा जाव उवासियाए वा अत्थेगतिए केवलं बंभचेरवासं आवसेज्जा, अत्थेगतिए केवलं बंभचेरवासं नो आवसेज्जा। [5-1 प्र.] भगवन् ! केवली यावत् केवलि-पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना ही क्या कोई जीव शुद्ध ब्रह्मचर्यवास धारण कर पाता है ? [5-1 उ.] गौतम ! केवली यावत् केवलि-पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना ही कोई जीव शुद्ध ब्रह्मचर्यवास को धारण लेता है और कोई नहीं कर पाता / [2] से केणठेणं भंते ! एवं बच्चइ जाव नो आवसेज्जा? गोयमा ! जस्स णं चरित्तावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे के डे भवइ से णं असोच्चा केलिस्स वा जाव केवलं बंभचेरवासं आवसेज्जा, जस्स णं चरित्तावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे नो कडे भवइ से णं असोच्चा केवलिस्स वा जाव नो आवसेज्जा, से तेणठेणं जाव नो आवसेज्जा / 1. भगवती. अ. बत्ति, पत्र 433 2. वही, पत्र 433 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org