________________ एगत्तीसइमो उद्देसओ : 'असोच्चा केवली' इकतीसवाँ उद्देशक : अश्रुत्वा केवली उपोद्घात 1. रायगिहे जाव एवं क्यासी {1 उपोद्घात- राजगृह नगर में यावत् (गौतमस्वामी ने भगवान् महावीरस्वामी से) इम प्रकार पूछाकेवली यावत् केवली पाक्षिक उपासिका से धर्मश्रवणलाभालाभ 2. [1] असोच्चा णं भंते ! केलिस्स वा केवलिसावगस्स वा केवलिसावियाए वा केवलिउवासगस्स वा केवलिउवासियाए वा तप्पविखयरस वा तप्पक्खियसावगरस वा तपक्खिय तपस्वियसावगस्स वा तप्यक्खियसावियाए वा तप्पक्खियउवासगस्स वा तप्पक्खियउवासियाए वा केवलिपणतं धम्म लभेज्जा सवणयाए ? गोयमा ! असोच्चा णं केवलिस्स वा जाव तपक्खियउवासियाए वा अत्थेगइए केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए, अत्थेगतिए केवलिपगणतं धम्म नो लभेज्जा सनणयाए / 2-1 प्र. भगवन् ! के वली, केवली के श्रावक, केवली की श्राविका, केवलो के उपासक, केवली की उपासिका, केवल-पाक्षिक (स्वयम्बुद्ध), केवलि-पाक्षिक के श्रावक, केवलि-पाक्षिक की श्राविका, केवलि-पाक्षिक के उपासक, केबलि-पाक्षिक की उपासिका, (इनमें से किसी) से विना सुने ही किमी जीव को केवलिप्ररूपित धर्मश्रवण का लाभ होता है ? [2-1 उ.] गौतम ! केवली यावत् केवलि-पाक्षिक की उपासिका (इन दस) से सूने विना ही किमी जीव को केवलिप्ररूपित धर्म-श्रवण का लाभ होता है और किसी जीव को नहीं भी होता / [2] से केणठेणं भंते ! एवं कुच्चइ-असोच्चा णं जाव नो लभेज्जा सवणयाए ? गोयमा ! जस्स णं नाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे कडे भवइ से णं असोच्चा केवलिस्स वा जाव तप्पक्खियउवासियाए वा केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्ज सवणयाए, जस्स णं नाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे नो कड़े भवइ से णं असोच्चा केवलिस्स वा जाव तपक्खियउवासियाए वा केवलिपण्णत्तं धम्म नो लभेज्ज सवणयाए, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-तं चेव जाव नो लभेज्ज सवणयाए। [2-2 प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि केवली यावत् केवलि-पाक्षिक की उपासिका (इन दस) से सुने बिना ही किसी जीव को केवलिप्ररूपित धर्म-श्रवण का लाभ होता है और किसी को नहीं भी होता ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org