________________ 418 / [ व्याख्थाप्रज्ञप्तिसूत्र 52. एवं नाम गोयं अंतराइयं च भाणियन्वं 4 / [52] इसी प्रकार नाम, गोत्र और अन्तराय कर्म के विषय में भी कहना चाहिए। 53. जस्स णं भंते ! पाउयं तस्स नामं० ? पुच्छा। गोयमा ! दो वि परोप्परं नियमं / [53 प्र.] भगवन् ! जिस जीव के आयुष्यकर्म होता है, क्या उसके नामकर्म होता है, और जिसके नामकर्म होता है, क्या उसके प्रायुष्यकर्म होता है ? [53 उ.] गौतम ! ये दोनों कर्म परस्पर नियमत: होते हैं। 54. एवं गोतेण वि समं भाणियन्वं / [54] (आयुष्यकर्म के विषय में) गोत्रकर्म के साथ भी इसी प्रकार कहना चाहिए / 55. जस्स णं भंते ! आउयं तस्स अंतराइयं? पुच्छा। गोयमा ! जस्स प्राउयं तस्स अंतराइयं सिय अस्थि सिय नस्थि जस्स पुण अंतराइयं तस्स पाउयं नियमा 5 / [55] भगवन् ! जिस जीव के आयुष्य कर्म होता है, क्या उसके अन्त राय कर्म होता है, और जिसके अन्तरायकर्म है, उसके अायुष्यकर्म होता है ? [55 उ.] गौतम ! जिसके प्रायुष्यकर्म होता है, उसके अन्तरायकर्म कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं होता, किन्तु जिस जीव के अन्तरायकर्म होता है, उसके प्रायुध्यकर्म अवश्य होता है / 56. जस्स णं भंते! नामं तस्स गोयं, जस्स णं गोयं तस्स णं नामं? गोयमा ! जस्स णं णाम तस्स णं नियमा गोयं, जस्स णं गोयं तस्स णं नियमा नामगोयमा ! दो वि एए परोप्परं नियमा। __ [56 प्र] भगवन् ! जिस जीव के नामकर्म होता है, क्या उसके गोत्रकर्म होता है, और जिसके गोत्रकर्म होता है, उसके नामकर्म होता है ? 56 उ.] गौतम ! जिसके नामकर्म होता है, उसके गोत्रकर्म अवश्य होता है, और जिसके गोत्रकर्म होता है, उसके नामकर्म भी अवश्य होता है। ये दोनों कर्म सहभावी हैं। 57. जस्स णं भंते ! गामं तस्स अंतराइयं.? पुच्छा / गोयमा ! जस्स नामं तस्स अंतराइयं सिय अस्थि सिय नस्थि, जस्स पुण अंतराइयं तस्स नाम नियमा अस्थि 6 / 57 प्र.] भगवन् ! जिसके नामकर्म होता है, क्या उसके अन्तरायकर्म होता है, और जिसके अन्तरायकर्म होता है, उसके नामकर्म होता है ? [57 उ.] गौतम ! जिस जीव के नामकर्म होता है, उसके अन्तराय कर्म होता भी है, नहीं भी होता किन्तु जिसके अन्तरायकर्म होता है, उसके नामकर्म नियमत: होता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org