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________________ अष्टम शतक : उद्देशक-१० ] [411 [25 प्र.] भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के तीन प्रदेश, क्या एक द्रव्य हैं अथवा एक द्रव्यदेश हैं ? इत्यादि पूर्वोक्त प्रश्न / [25 उ.] गौतम ! 1. कथञ्चित् एक द्रव्य हैं, 2. कथञ्चित् एक द्रव्यदेश हैं; इस प्रकार यावत्-'कथञ्चित् बहुत द्रव्य और एक द्रव्यदेश है ; किन्तु बहुत द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश नहीं हैं'; यहां तक (पूर्वोक्त) सात भंग कहने चाहिए। 26. चत्तारि भंते ! पोग्गल स्थिकायपएसा कि दव्वं० पुच्छा। गोयमा ! सिय दव्वं 1, सिय दव्वदेसे 2, अट्ठ वि भंगा माणियव्वा जाव सिय दव्वाई च ददवदेसा य 8 / [26 प्र.] भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के चार प्रदेश क्या एक द्रव्य हैं या एक द्रव्यदेश हैं ? इत्यादि पूर्वोक्त प्रश्न.... / [26 उ.] गौतम ! कञ्चित् एक द्रव्य है, कञ्चित् एक द्रव्यदेश हैं, इत्यादि पाठों ही भंग, यावत् 'कथञ्चित् बहुत द्रव्य हैं और बहुत द्रव्यदेश हैं, यहाँ तक कहने चाहिए। 27. जहा चत्तारि भणिया एवं पंच छ सत्त जाव असंखेज्जा। [27] जिस प्रकार चार प्रदेशों के विषय में कहा, उसी प्रकार पांच, छह, सात यावत् असंख्य प्रदेशों तक के विषय में कहा 28. अणंता भंते ! पोग्गलस्थिकायपएसा कि दवं? एवं चेव जाव सिय दवाइं च दव्वदेसा य / [28 प्र.] भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के अनन्तप्रदेश क्या एक द्रव्य हैं या एक द्रव्यदेश हैं ? इत्यादि (पूर्वोक्त अष्टविकल्पात्मक) प्रश्न"। [28 उ.] गौतम ! पहले कहे अनुसार यहाँ भी यावत्-'कथंचित् बहुत द्रव्य हैं, और बहुत द्रव्यदेश हैं'; यहाँ तक आठों ही भंग कहने चाहिए। विवेचन-पुद्गलास्तिकाय के एक प्रदेश से लेकर अनन्त प्रदेश तक के विषय में अष्टविकल्पीय प्रश्नोत्तर-प्रस्तुत छह सूत्रों (सू. 23 से 28 तक) में पुद्गलास्तिकाय के एकप्रदेश से लेकर अनन्त प्रदेश तक के विषय में अष्टविकल्पात्मक प्रश्नोत्तर प्ररूपित हैं। किसमें कितने भंग ?..-प्रस्तुत सूत्रों में पुद्गलास्तिकाय के विषय में 8 भंग उपस्थित किये गए हैं, जिनमें द्रव्य और द्रव्यदेश के एकवचन और बहुवचन-सम्बन्धी असंयोगी चार भंग हैं और द्विकसंयोगी 4 भंग हैं / जब दूसरे द्रव्य के साथ उसका सम्बन्ध नहीं होता, तब वह द्रव्य (गुणपर्याययोगी) है और जब दूसरे द्रव्य के साथ उसका सम्बन्ध होता है, तब वह द्रव्यदेश (द्रव्याक्यव) है। पुद्गलास्तिकाय के एक प्रदेश में प्रदेश एक ही है, इसलिए उस में बहुवचनसम्बन्धी दो भंग और द्विकसंयोगी चार भंग, ये 6 भंग नहीं पाए जाते / पुद्गलास्तिकाय के द्विप्रदेशिकस्कन्ध रूप से परिणत दो प्रदेशों में उपर्युक्त 8 भंगों में से पहले-पहले के पांच भंग पाए जाते हैं और पुद्गलास्तिकाय के त्रिप्रदेशिकस्कन्धरूप से परिणत तीन प्रदेशों में पहले-पहले के सात भंग पाए जाते हैं / चार प्रदेशों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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