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________________ 410] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसून [22 उ.] गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है / वह इस प्रकार-परिमण्डलसंस्थानपरिणाम, यावत् अायतसंस्थान-परिणाम / विवेचन-पुद्गल-परिणाम के भेद-प्रभेदों का निरूपण-प्रस्तुत चार सूत्रों में पुद्गलपरिणाम के वर्णादि पांच प्रकार एवं उनके भेदों का निरूपण किया गया है। पुद्गल-परिणाम की व्याख्या–पुद्गल का एक अवस्था से दूसरी अवस्था में रूपान्तर होना पुद्गलपरिणाम है। इसके मूल भेद पांच और उत्तरभेद पच्चीस हैं।' पुद्गलास्तिकाय के एकप्रदेश से लेकर अनन्तप्रदेश तक अष्टविकल्पात्मक प्रश्नोत्तर-- 23. एगे भंते ! पोग्गलस्थिकायपएसे कि दवं 1, दबदेसे 2, दवाई 3, दवदेसा 4, उदाहु दव्वं च दन्वदेसे य 5, उदाहु दन्वं च दव्वदेसा य 6, उदाहु दवाइं च दव्वदेसे य 7. उदाहु दन्वाइं च दव्वदेसा य 8 ? गोयमा ! सिय दवं, सिय दव्वदेसे, नो दवाई, नो दवदेसा, नो दव्वं च दन्वदेसे य, जाव नो दवाइंच दम्वदेसाय। 23 प्र.] भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय का एक प्रदेश (1) द्रव्य है, (2) द्रव्य-देश है (3) बहुत द्रव्य हैं, अथवा (4) बहुत द्रव्य-देश हैं ? अथवा (5) एक द्रव्य और एक द्रव्यदेश है, या (6) एक द्रव्य और बहुत द्रव्य-देश हैं, अथवा (7) बहुत द्रव्य और एक द्रव्यदेश है, या (8) बहुत द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश हैं ? [23 उ.] गौतम ! वह कथञ्चित् एक द्रव्य है, कथञ्चित् एक द्रव्यदेश है, किन्तु वह बहुत द्रव्य नहीं, न बहुत द्रव्यदेश है, एक द्रव्य और एक द्रव्यदेश भी नहीं, यावत् बहुत द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश भी नहीं। 24. दो भंते ! पोग्गलस्थिकायपएसा कि दव्वं दव्वदेसे० पुच्छा तहेव ? गोयमा ! सिय दव्वं 1, सिय दवदेसे 2, सिय दवाई 3, सिय दव्वदेसा 4, सिय दव्वं च दधदेसे य 5, नो दवं च दव्वदेसा य 6, सेसा पडिले हेयन्या / [24 प्र.] भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के दो प्रदेश क्या एक द्रव्य हैं, अथवा एक द्रव्यदेश हैं ? इत्यादि (पूर्वोक्त अष्टविकल्पात्मक) प्रश्न / [24 उ.] गौतम ! 1. कथंचित् द्रव्य हैं, 2. कञ्चित् द्रव्यदेश हैं, 3. कथंचित् बहुत द्रव्य हैं, 4. कथंचित् बहुत द्रव्यदेश हैं, और 5. कथंचित् एक द्रव्य और एक द्रव्यदेश हैं; परन्तु 6. एक द्रव्य और बहुत द्रव्य देश नहीं, 7. बहुत द्रव्य और एक द्रव्यदेश नहीं तथा 8. बहुत द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश नहीं हैं / (अर्थात्-प्रथम के 5 भंगों के अतिरिक्त शेष भंगों का निषेध करना चाहिए।) 25. तिणि भंते ! पोग्गलस्थिकायपएसा कि दव्वं, दम्वदेसे० पुच्छा। गोयमा ! सिय दवं 1, सिय दम्वदेसे 2, एवं सत्त भंगा भाणियच्या, जाव सिय दवाइंच दव्वदेसे य: नो वव्वाइं च दव्वदेसा य / 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक 420 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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