SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1009
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 408] [ज्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [16 प्र.] भगवन् ! ज्ञान को जघन्य आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है ? [16 उ.] गौतम ! कितने ही जीव तीसरा भव ग्रहण करके सिद्ध होते हैं, यावत् सर्व दु:खों का अन्त करते हैं; परन्तु सात-पाठ भव का अतिक्रमण नहीं करते / 17. एवं दसणाराहणं पि। [17] इसी प्रकार जघन्य दर्शनाराधना के (फल के) विषय में समझना चाहिए। 18. एवं चरित्ताराहणं पि। [18] इसी प्रकार जघन्य चारित्राराधना के (फल के) विषय में भी कहना चाहिए। विवेचन–ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना, इनका परस्पर सम्बन्ध एवं इनकी उत्कृष्टमध्यम-जघन्याराधना का फल--प्रस्तुत 16 सूत्रों (सू. 3 से 18 तक) में रत्नत्रय की प्राराधना और उनके पारस्परिक सम्बन्ध तथा उनके जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट फल के विषय में निरूपण किया गया है। पाराधना : परिभाषा, प्रकार और स्वरूप-ज्ञानादि की निरतिचार रूप से अनुपालना करना प्राराधना है। आराधना के तीन प्रकार हैं-ज्ञानाराधना, दर्शनाराधना और चारित्राराधना / पांच प्रकार के ज्ञान या ज्ञानाधार श्रुत (शास्त्रादि) की, काल, विनय, बहुमान आदि पाठ ज्ञानाचार-सहित निर्दोष रीति से पालना करना ज्ञानाराधना है / शंका, कांक्षा आदि अतिचारों को न लगाते हुए, नि:शंकित, निष्कांक्षित आदि पाठ दर्शनाचारों का शुद्धतापूर्वक पालन करते हुए दर्शन अर्थात् सम्यक्त्व की आराधना करना, दर्शनाराधना है। सामायिक आदि चारित्रों अथवा समिति-गुप्ति, व्रत-महाव्रतादि रूप चारित्र का निरतिचार-विशुद्ध पालन करना चारित्राराधना है। ज्ञानकृत्य एवं ज्ञानानुष्ठानों में उत्कृष्ट प्रयत्न करना उत्कृष्ट ज्ञानाराधना है / इसमें चौदह पूर्व का ज्ञान पा जाता है। मध्यम प्रयत्न करना मध्यम ज्ञानाराधना है, इसमें ग्यारह अंगों का ज्ञान आ जाता है। और जघन्य (अल्पतम) प्रयत्न करना जघन्य ज्ञानाराधना है। इसमें अष्टप्रवचनमाता का ज्ञान आ जाता है। इसी प्रकार दर्शन और चारित्र की आराधना में उत्कृष्ट, मध्यम एवं जघन्य प्रयत्न करना उनकी उत्कृष्ट, मध्यम एवं जघन्य आराधना है। उत्कृष्ट दर्शनाराधना में क्षायिकसम्यक्त्व, मध्यम दर्शनाराधना में उत्कृष्ट क्षायोपशमिक या औपशमिक सम्यक्त्व और जघन्य दर्शनाराधना में जघन्य क्षायोपशमिक सम्यक्त्व पाया जाता है। उत्कृष्ट चारित्राराधना में यथाख्यात चारित्र, मध्यम चारित्राराधना में सूक्ष्मसम्पराय और परिहारविशुद्धि चारित्र तथा जघन्य चारित्राराधना में सामायिक चारित्र और छेदोपस्थापनिक चारित्र पाया जाता है / अाराधना के पूर्वोक्त प्रकारों का परस्पर सम्बन्ध-उत्कृष्ट ज्ञानाराधक में उत्कृष्ट और मध्यम दर्शनाराधना होती है, किन्तु जघन्य दर्शनाराधना नहीं होती, क्योंकि उसका वैसा ही स्वभाव है / उत्कृष्ट दर्शनाराधक में ज्ञान के प्रति तीनों प्रकार का प्रयत्न सम्भव है, अतः पूर्वोक्त तीनों प्रकार की ज्ञानाराधना भजना से होती है। जिसमें उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है, उसमें चारित्राराधना उत्कृष्ट या मध्यम होती है, क्योंकि उत्कृष्ट ज्ञानाराधक में चारित्र के प्रति तीनों प्रकार का प्रयत्न भजना से होता है। जिसकी उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, उसमें तीनों प्रकार की चारित्राराधना भजना से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy