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________________ मष्टम शतक : उद्देशक-१०] [407 11 उ.] गौतम ! (जिस प्रकार उत्कृष्ट ज्ञानाराधना के फल के विषय में कहा है, उसी प्रकार उत्कृष्ट दर्शनाराधना के (फल के) विषय में समझना चाहिए। 12. उक्कोसियं णं भंते ! चरित्ताराहणं पाराहेत्ता ? एवं चेव / नवरं प्रत्थेगतिए कप्पातीएसु उववज्जति / [12 प्र.] भगवन् ! चारित्र की उत्कृष्ट आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है ? [12 उ.] गौतम ! उत्कृष्ट ज्ञानाराधना के (फल के) विषय में जिस प्रकार कहा था उसी प्रकार उत्कृष्ट चारित्राराधना के (फल के) विषय में कहना चाहिए। विशेष यह है कि कितने ही जीव (इसके फलस्वरूप) कल्पातीत देवलोकों में उत्पन्न होते हैं। 13. मज्झिमियं णं भंते ! जाणाराहणं पाराहेत्ता कतिहि भवग्गहणेहि सिज्झति जाव अंतं करेति ? गोयमा ! प्रत्थेगतिए दोच्चेणं भवग्गहणणं सिभइ जाच अंतं करेति, तच्चं पुण भवग्रहणं नाइक्कमइ / [13 प्र.] भगवन् ! ज्ञान की मध्यम-आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त कर देता है ? [13 उ.] गौतम ! कितने ही जीव दो भव ग्रहण करके सिद्ध होते हैं, यावत् सभी दुःखों का अन्त करते हैं; वे तीसरे भव का अतिक्रमण नहीं करते। 14. मज्झिमियं णं भंते ! दंसणाराहणं पाराहेत्ता ? एवं चेव / [14 प्र.] भगवन् ! दर्शन की मध्यम आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है ? [14 उ.] गौतम ! जिस प्रकार ज्ञान की मध्यम अाराधना के (फल के) विषय में कहा, उसी प्रकार दर्शन की मध्यम आराधना के (फल के) विषय में कहना चाहिए / 15. एवं मज्झिमियं चरित्ताराहणं पि / [15] इसी (पूर्वोक्त) प्रकार से चारित्र की मध्यम आराधना के (फल के) विषय में कहना चाहिए। 16. जहन्नियं णं भंते ! नाणाराहणं पाराहेत्ता कतिहि भवागहणेहि सिज्झति जाव अंतं करेति? गोयमा ! प्रत्थेगतिए तच्चे णं भवम्गहणणं सिज्मद जाव अंतं करेइ, सत्त-ट्टभवग्गहणाई पुण नाइयकम। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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