________________ 406] [व्याख्याप्राप्तिसून 8. जस्स णं भंते ! उक्कोसिया गाणाराहणा तस्स उक्कोसिया चरिताराहणा? जस्सुक्कोसिया चरिताराहणा तस्सुक्कोसिया जाणाराहणा? जहा उक्कोसिया गाणाराहणा य दंसणाराहणा य भणिया तहा उक्कोसिया णाणाराहणा य चरित्ताराहणा य भाणियन्वा / [8 प्र.] भगवन् ! जिस जीव के उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है और जिस जीव के उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है ? [8 उ.] गौतम ! जिस प्रकार उत्कृष्ट ज्ञानाराधना और दर्शनाराधना के विषय में कहा, उसी प्रकार उत्कृष्ट ज्ञानाराधना और उत्कृष्ट चारित्राराधना के विषय में भी कहना चाहिए। 6. जस्स णं भंते ! उक्कोसिया सणाराहणा तस्सुक्कोसिया चरिताराहणा? जस्सुक्कोसिया चरित्ताराणा तस्सुक्कोसिया दंसणाराहणा? गोयमा ! जस्स उक्कोसिया दंसणाराहणा तस्स चरित्ताराहणा उक्कोसा वा जहन्ना वा अजहन्नमणुक्कोसा वा, जस्स पुण उक्कोसिया चरिताराहणा तस्स सणाराहणा नियमा उक्कोसा। [प्र.] भगवन् ! जिसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है, और जिसके उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है, उसके उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है ? उ.] गौतम ! जिसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, उसके उत्कृष्ट, मध्यम या जघन्य चारित्राराधना होती है और जिसके उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है, उसके नियमत: (अवश्यमेव) उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है / 10. उक्कोसियं णं भंते ! णाणाराहणं पाराहेत्ता कतिहि भवग्गहणेहि सिज्झति जाव अंतं करेति ? ___गोयमा ! प्रत्येगइए तेणेव भवगहणेणं सिझति जाव अंतं करेति / अत्यंगतिए दोच्चेणं भवग्गणेणं सिझति जाव अंतं करेति / अत्थेगतिए कप्योवएसु वा कप्पातीएसु वा उववज्जति / [10 प्र.] भगवन् ! ज्ञान की उत्कृष्ट पाराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है ? [10 उ.] गौतम ! कितने ही जीव उसी भव में सिद्ध हो जाते हैं, यावत् सभी दु:खों का अन्त कर देते हैं, कितने ही जीव दो भव ग्रहण करके सिद्ध होते हैं, यावत् सभी दुःखों का अन्त करते हैं; कितने ही जीव कल्पोपपन्न देवलोकों में अथवा कल्पातीत देवलोकों में उत्पन्न होते हैं। 11. उक्कोसियं णं भंते ! दसणाराहणं पाराहेत्ता कतिहि भवग्गहणेहि ? एवं चेव। [11 प्र.] भगवन् ! दर्शन को उत्कृष्ट पाराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org