________________ अष्टम शतक : उद्देशक-१०] [405 ज्ञान-दर्शन-चारित्र की आराधना, इनका परस्पर सम्बन्ध एवं इनकी उत्कृष्ट-मध्यमजघन्याराधना का फल 3. कतिविहा णं भंते ! प्राराहणा पण्णता? गोयमा ! तिविहा आराहणा पण्णता, तं जहा-नाणाराहणा दंसणाराहणा चरित्ताराहणा। 3 प्र.] भगवन् ! पाराधना कितने प्रकार की कही गई है ? [3 उ.] गौतम ! आराधना तीन प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार-(१) ज्ञानाराधना, (2) दर्शनाराधना और (3) चारित्राराधना / 4. जाणाराहणाणं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा! तिविहा पण्णता, तं जहा–उक्कोसिया मज्झिमिया जहन्ना / [4 प्र.] भगवन् ! ज्ञानाराधना तीन प्रकार की कही गई है ? [4 उ.] गौतम ! ज्ञानाराधना तीन प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है-(१) उत्कृष्ट, (2) मध्यम और (3) जघन्य / 5. बंसणाराहणा णं भंते !.? एवं चेव तिविहा वि। [5 प्र.] भगवन् ! दर्शनाराधना कितने प्रकार की कही गई है ? [5 उ.] गौतम ! दर्शनाराधना भी इसी प्रकार तीन प्रकार की कही गई है। 6. एवं चरिताराहणा वि। [6] इसी प्रकार चारित्राराधना भी तीन प्रकार की कही गई है। 7. जस्स गं भंते ! उक्कोसिया जाणाराहणा तस्स उक्कोसिया दंसणाराहणा ? जस्स उक्कोसिया दंसणाराहणा तस्स उक्कोसिया णाणाराहणा? गोयमा! जस्स उक्कोसिया जाणाराहणा तस्स दंसणाराहणा उक्कोसिया वा अजहन्न। उक्कोसिया वा, जस्स पुण उक्कोसिया दंसणाराहणा तस्स नाणाराहणा उक्कोसा वा जहन्ना वा अजहन्नमणुक्कोसा वा। [7 प्र.] भगवन् ! जिस जीव के उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, और जिस जीव के उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है ? 7i उ.] गौतम ! जिस जीव के उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है, उसके दर्शनाराधना उत्कृष्ट या मध्यम (अजघन्य-अनुत्कृष्ट) होती है। जिस जीव के उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, उसके उत्कृष्ट, जघन्य या मध्यम ज्ञानाराधना होती है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org