SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1002
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टम शतक : उद्देशक-९ ] [401 विशेषाधिक हैं, (8) उनसे उसी (औदारिकशरीर) के देशबन्धक असंख्यातगुणे हैं, (6) उनसे तेजस और कार्मणशरीर के देशबन्धक जीव विशेषाधिक हैं। (10) उनसे वैक्रियशरीर के प्रबन्धक जीव विशेषाधिक हैं और (11) उनसे आहारकशरीर के प्रबन्धक जीव विशेषाधिक हैं। - 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है'; यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरण करते हैं। विवेचन–प्रौदारिकादि शरीरों के देश-सर्वबन्धकों और प्रबन्धकों के अल्पबहुत्व की प्ररूपणाप्रस्तुत सूत्र में पांचों शरीरों के बन्धकों-प्रबन्धकों में जो जिससे अल्प, अधिक, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं, उनकी प्ररूपणा की गई है। अल्पबहुत्व का कारण-(१) पाहारकशरीर चौदहपूर्वधर मुनि के ही होता है, वे भी विशेष प्रयोजन होने पर ही आहारकशरीर धारण करते हैं। फिर सर्वबन्ध का काल भी सिर्फ एक समय का है, अतएव आहारकशरीर के सर्वबन्धक सबसे अल्प हैं। (2) उनसे आहारकशरीर के देशबन्धक संख्यातगुणे हैं, क्योंकि देशबन्ध का काल अन्तमुहर्त है। (3) उनसे वैक्रियशरीर के सर्वबन्धक असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि आहारकशरीरधारी जीवों से वैक्रियशरीरी असंख्यातगुणे अधिक हैं। (4) उनसे वैक्रियशरीरधारी देशबन्धक जीव असंख्यातगुणे अधिक हैं, क्योंकि सर्वबन्ध से देशबन्ध का काल असंख्यातगुणा है / अथवा प्रतिपद्यमान सर्वबन्धक होते हैं, और पूर्वप्रतिपन्न देशबन्धक ; अत: प्रतिपद्यमान की अपेक्षा पूर्वप्रतिपन्न असंख्यातगुणे हैं। (5) उनसे तैजस और कार्मणशरीर के प्रबन्धक अनन्तगुणे हैं, क्योंकि इन दोनों शरीरों के अबन्धक सिद्ध भगवान् हैं, जो वनस्पतिकायिक जीवों के सिवाय शेष सर्व संसारी जीवों से अनन्तगुणे हैं। (6) उनसे औदारिकशरीर के सर्वबन्धक जीव अनन्तगुणे हैं, क्योंकि वनस्पतिकायिक जीव भी औदारिकशरीरधारियों में हैं, जो कि अनन्त हैं। (7) उनसे औदारिकशरीर के प्रबन्धक जीव इसलिए विशेषाधिक हैं, कि विग्रहगतिसमापनक जीव तथा सिद्ध जीव सर्वबन्धकों से बहुत हैं / (8) उनसे औदारिकशरीर के देशबन्धक असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि विग्रहगति के काल को अपेक्षा देशबन्धक का काल असंख्यातगुणा है। (9) उनसे तैजस-कार्मणशरीर के देशबन्धक विशेषाधिक हैं, क्योंकि सारे संसारी जीव तैजस और कार्मण शरीर के देशबन्धक होते हैं। इनमें विग्रहगतिसमापन्नक, औदारिक सर्वबन्धक और वैक्रियादि-बन्धक जीव भी आ जाते हैं। अतः औदारिक देशबन्धकों से ये विशेषाधिक बताए गए हैं। (10) उनसे वैक्रियशरीर के प्रबन्धक जीव विशेषाधिक हैं, क्योंकि वैक्रियशरीर के बन्धक प्रायः देव और नारक हैं। शेष सभी संसारी जोव और सिद्ध भगवान् वैक्रिय के अबन्धक ही हैं, इस अपेक्षा से वे तैजसादि देशबन्धकों से विशेषाधिक बताए गए हैं। (11) उनसे आहारकशरीर के प्रबन्धक विशेषाधिक हैं, क्योंकि वैक्रिय तो देव-नारकों के भी होता है, किन्तु आहारकशरीर सिर्फ चतुर्दश पूर्वधर मुनियों के होता है। इस अपेक्षा से प्राहारकशरीर के प्रबन्धक विशेषाधिक कहे गए हैं।' / / अष्टम शतक : नवम उद्देशक समाप्त / / 1. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 414 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy