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________________ 400 ] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र पांच शरीरों में परस्पर बन्धक-प्रबन्धक-औदारिक और वैक्रिय, इन दो शरीरों का परस्पर एक साथ बन्ध नहीं होता, इसी प्रकार औदारिक और आहारकशरीर का भी एक साथ बन्ध नहीं होता। अतएव औदारिकशरीरबन्धक जीव वैक्रिय और आहारक का प्रबन्धक होता है, किन्तु तेजस और कार्मणशरीर का औदारिकशरीर के साथ कभी विरह नहीं होता। इसीलिए वह इनका देशबन्धक होता है। इन दोनों शरीरों का सर्वबन्ध तो कभी होता ही नहीं। तजस कार्मणशरीर का देशबन्धक औदारिकशरीर का बन्धक और प्रबन्धक कैसे?-तैजसशरीर और कार्मणशरीर का देशबन्धक जीव औदारिकशरीर का बन्धक भी होता है, अबन्धक भी, इसका प्राशय यह है कि विग्रहगति में वह अबन्धक होता है तथा वैक्रिय में हो या आहारक में, तब भी वह औदारिकशरीर का प्रबन्धक ही रहता है, और शेष समय में बन्धक होता है। उत्पत्ति के प्रथम समय में वह सर्वबन्धक होता है, जबकि द्वितीय आदि समयों में वह देशबन्धक हो जाता है। इसी प्रकार कार्मणशरीर के विषय में भी समझना चाहिए। शेष शरीरों के साथ बन्धक-प्रबन्धक आदि का कथन सुगम है. स्वयमेव घटित कर लेना चाहिए।' औदारिक आदि पांच शरीरों के देश-सर्वबन्धकों एवं प्रबन्धकों के अल्पबहुत्व को प्ररूपरगा-- 129. एएसिणं भंते ! जीवाणं पोरालिय-वेउन्विय-पाहारग-तेया-कम्मासरीरगाणं देसबंधगाणं सम्वबंधगाणं प्रबंधगाण य कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा? गोधमा ! सम्वत्थोवा जीवा प्राहारगसरीरस्स सव्वबंधगा 1 / तस्स चेव देसबंधगा संखेज्जगुणा 2 / वेउब्वियसरीरस्स सम्वबंधगा असंखेज्जगुणा 3 / तस्स चेव देसबंधगा असंखेज्जगुणा 4 / तेया-कम्मगाणं दुण्ह वि तुल्ला प्रबंधगा अणंतगुणा 5 / ओरालियसरीरस्स सवबंधगा अणंतगुणा 6 / तस्स चेव प्रबंधगा विसेसाहिया 7 / तस्स चेव देसबंधगा असंखेज्जगुणा 8 / तेया-कम्मगाणं देसबंधगा विसे साहिया है। वेउब्वियसरीरस्स प्रबंधगा विसेसाहिया 10 / प्राहारगसरीरस्स अबंधगा विसेसाहिया 11 / सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० / ॥अट्ठमसए : नवमो उद्देसनो समतो॥ [129 प्र.] भगवन् ! इन औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तेजस और कार्मण शरीर के देशबन्धक, सर्वबन्धक और प्रबन्धक जीवों में कौन किनसे कम, अधिक, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [126 उ.] गौतम ! (1) सबसे थोड़े अाहारकशरीर के सर्वबन्धक जीव हैं, (2) उनसे उसी (पाहारकशरीर) के देशबन्धक जीव संख्यातगुणे हैं, (3) उनसे वैक्रियशरीर के सर्वबन्धक असंख्यातगुणे हैं, (4) उनसे वैक्रियशरीर के देशबन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं, (5) उनसे तेजस और कार्मण, इन दोनों शरीरों के प्रबन्धक जीव अनन्तगुणे हैं, ये दोनों परस्पर तुल्य हैं। (6) उनसे औदारिकशरीर के सर्वबन्धक जीव अनन्तगुणे हैं, (7) उनसे प्रौदारिकशरीर के प्रबन्धक जीव 1. भगवतीसूत्र, अ. वृत्ति, पत्रांक 423 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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