________________ अष्टम शतक : उद्देशक-९] [399 [127-2 उ.] गौतम ! वह देशबन्धक भी है, सर्वबन्धक भी है / [3] उब्वियसरीरस्स कि बंधए, अबंधए ? एवं चेव। [127-3 प्र.] भगवन् ! तैजसशरीर का बन्धक जीव वैक्रियशरीर का बन्धक है अथवा प्रबन्धक ? [127-3 उ.] गौतम ! पूर्ववक्तव्यानुसार समझना चाहिए। [4] एवं प्राहारगसरीरस्स वि / [127-4] इसी प्रकार आहारकशरीर के विषय में भी जानना चाहिए। [5] कम्मगसरीरस्स कि बंधए, प्रबंधए ? गोयमा! बंधए, नो प्रबंधए / [127-5 प्र.] भगवन् ! तैजसशरीर का बन्धक जीव कार्मणशरीर का बन्धक है या प्रबन्धक? [127-5 उ.] गौतम ! बह बन्धक है, अबन्धक नहीं / [6] जइ बंधए कि देसबंधए, सव्वबंधए ? गोयमा ! देसबंधए, नो सम्वबंधए / [127-6 प्र. भगवन् ! यदि वह कार्मणशरीर का बन्धक है तो देश बन्धक है या सर्वबन्धक? [127-6 उ.] गौतम ! वह देशबन्धक है, सर्वबन्धक नहीं / 128, जस्स णं भंते ! कम्मगसरीरस्स देसबंधए से णं भंते ! पोरालियसरीरस्स? जहा तेयगस्स वत्तवया भणिया तहा कम्मगल्स वि भाणियचा जाव तेयासरीरस्स जाव देसबंधए, नो सब्यबंधए। [128 प्र.] भगवन् ! जिस जीव के कार्मणशरीर का देशबन्ध है, वह औदारिकशरीर का बन्धक है या प्रबन्धक ? [128 उ.] गौतम ! जिस प्रकार तैजसशरीर की वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार कार्मणशरीर की भी, यावत्-'तैजसशरीर' तक यावत्-देशबन्धक है, सर्वबन्धक नहीं, यहाँ तक कहना चाहिए। विवेचन--पांचों शरीरों के एक-दूसरे के साथ बन्धक-प्रबन्धक की चर्चा-विचारणा–प्रस्तुत 9 सूत्रों (सू. 120 से 128 तक) में औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण, इन पांचों शरीरों के परस्पर एक दूसरे के साथ बन्धक-प्रबन्धक तथा देशबन्ध-सर्वबन्ध की चर्चा-विचारणा की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org