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________________ इस तरह प्रज्ञापना में समवायांग के अनेक विषय प्रतिपादित हैं। कितने ही सूत्र तो समवायांगगत सूत्रों से प्रायः मिलते हैं। समवायांग में जिन विषयों के संकेत किये गये हैं, उन विषयों को श्यामाचार्य ने प्रज्ञापना में विस्तार से निरूपित किया है। अत्यधिक साम्य होने के कारण ही इसे समवायांग का उपांग माना गया लगता है। समवायांग और जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति प्राचीन जैन भूगोल का महत्त्वपूर्ण प्रागम है। इस आगम में जैन दृष्टि से सष्टिविद्या के बीज यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं। भगवान् ऋषभदेव का प्राग ऐतिहासिक जीवन भी इसमें मिलता है। प्रस्तुत आगम के साथ अनेक विषयों की तुलना सहज रूप से इसके साथ की जा सकती है। पाठवें समवाय का चौथा सुत्र-'जंबू णं सुदंसणा अह........' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में भी जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के सुदर्शन वृक्ष की आठ योजन की ऊँचाई कही है। आठवें समवाय का पांचवा सूत्र-'कूडस्स' सालमलिस्स ........' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में भी गरुडावास कूट शल्मली वृक्ष आठ योजन के ऊँचे बताये हैं। आठवें समवाय का छठा सूत्र-'जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति णं........' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 12 में भी जम्बद्वीप की जगती पाठ योजन ऊँची बतायी है। नवमें समवाय का नवमां सूत्र-'विजयस्स णं दारस्स .....' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति६.३ में भी विजय द्वार के प्रत्येक पार्श्व भाग में नौ-नौ भौम नगर कहे हैं। दशवें समवाय का तृतीय सूत्र-'मंदरे णं पब्बए ......' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 14 में भी मेरु पर्वत के मूल का विष्कम्भ दश हजार योजन का बताया है। दशवें समवाय का पाठवां सूत्र-'अकम्मभूमियाणं......' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 15 में भी अकर्मभूमिज मनुष्यों के उपयोग के लिये कल्पवृक्षों का वर्णन है। ___ ग्यारहवें समवाय का द्वितीय सूत्र--- 'लोगंतानो इक्कारसएहि........' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 16 में भी लोकान्त से अव्यवहित ग्यारह सौ ग्यारह योजन दूरी पर ज्योतिषकचक्र प्रारम्भ होता है। ग्यारहवें समवाय का तीसरा सूत्र---'जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्स........' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 617 में भी जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत से अव्यवहित म्यारह सौ ग्यारह योजन की दूरी पर ज्योतिष्कचक्र प्रारम्भ होता है। ग्यारहवें समवाय का सातवां सूत्र-'मंदरे णं पव्वए........' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में भी मेरु पर्वत के पृथ्वीतल के विष्कम्भ से शिखर तल का विष्कम्भ ऊँचाई की अपेक्षा ग्यारह भाग हीन है। बारहवें समवाय का चतुर्थ सूत्र-'विजया णं रायहाणी........' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 16 में भी विजया राजधानी का आयाम-विष्कम्भ बारह लाख योजन का बताया है। 610. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-बक्षस्कार 4, सू. 90 611. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष. 4, सू. 100 612. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष. 1, सू. 4 613. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष. 1, सू. 4 614. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष. 4, सू. 103 615. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष. 2, स. 130 616. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष. 7, सू. 164 617. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष. 7, स. 164 618. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति--वक्ष. 4, सू. 103 619. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष. 1, सू.८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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