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________________ समवायांग के छठे समवाय का तीसरा सूत्र--'छब्बिहे बाहिरे तवोकम्मे' है और चौथा सुत्र 'छविहे अम्भितरे तवोकम्मे..' है तो औपपातिक 65 में छह बाह्य और छह आभ्यंतर तपों का उल्लेख है। समवायांग के सातवें समवाय का तीसरा सूत्र-'समणे भगवं महावीरे सत्त रयणीमो उड्ढ़ उच्चत्तेणं होत्था' है तो आपपातिक 66 में भी महावीर के सात हाथ ऊंचे होने का वर्णन है। समवायांग के आठवें समवाय का सातवां सूत्र-'असामइए केवलिसमुग्घाए...' है तो औषपातिक 67 में भी केवलीसमुद्घात का उल्लेख है। समवायांग के बारहवें समवाय का दसवां सूत्र---'सम्वट्ठसिद्धस्स णं महाविमाणस्य...' है और ग्यारहवां सूत्र 'ईसिपब्भाराए णं पुढवीए' है तो औपपातिक 68 में भी ईषतप्रारभारा पृथ्वी का वर्णन है और उसके बारह नाम बताये हैं। समवायांग के चौतीसवें समवाय का पहला सूत्र- 'चौत्तीसं बुद्धाइसेसा पण्णत्ता' है तो औपपातिक 466 में भी बुद्धातिशय के चौतीस भेद बताये हैं। समवायांम के पैतीसवें समवाय का पहला सूत्र-'पणतीसं सच्चवयणाइसेमा पण्णत्ता' है तो औपपातिक 70 में भी सत्य-वचनातिशय पैतीस बताये हैं। ममवायांग पैतासीसवें समवाय का चतुर्थ सूत्र---'ईसियभारा णं पुढवी एवं चेव' है तो प्रोपपातिक" में भी 'ईषत प्रारभारा' पृथ्वी का आयाम-विज्कंभ पैतालीस लाख योजन का बताया है। समवायांग सूत्र के एक्कानवेवां समवाय का पहला सत्र-'एकाण उई परवेयावच्चकम्मपडिमाओ पण्णत्ताओ' है तो औपपातिक 72 में भी दूसरे की वैयावत्य करने की प्रतिज्ञाएं एक्कानबें बताई हैं। इस तरह समवायांग और औपपातिक में विषयसाम्य है। समवायांग और जीवाभिगम समवायांग में आये हुए कुछ विषयों की तुलना अब हम तृतीय उपाङ्ग जीवाभिगम सूत्र के साथ करेंगे। समवायांग के द्वितीय समवाय का दूसरा सत्र-'दुवे रासी पण्णत्ता' है तो जीवाभिगम७3 में भी दो राशियों का उल्लेख है / समवायांग के छठे समवाय का द्वितीय सत्र-'छ जीव-निकाया पण्णत्ता' है तो जीवाभिगम७४ में भी यह वर्णन है। समवायांग के नौवें समवाय का नौवां सत्र-'विजयस्स णं दारस्म एगमेगाए बाहाए नव-नव भोमा पण्णता' है तो जीवाभिगम 75 में भी विजयद्वार के प्रत्येक पार्श्वभाग में नौ नौ भौम नगर हैं, ऐमा उल्लेख है / 465. औपपातिक सूत्र 30 466. औपपातिक सूत्र 10 467. औषपातिक सूत्र 42 468. औपपातिक सूत्र 43 469. औपपातिक सूत्र 10 470. औपपातिक सूत्र 10 471. औपपातिक सूत्र 43 472. औपपातिक सूत्र 20 473. जीवाभिगम प्र. 1, सूत्र 1 474. जीवाभिगम प्र. 5, सूत्र 228 475. जीवाभिमम प्र. 3, सूत्र 132 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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