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________________ समवायांग सूत्र के नौवें समवाय का द्वितीय सूत्र--'नव बंभचेर-अगुत्तीओ पण्णत्ताओ' है तो प्रश्नव्याकरण४४२ में भी नौ ब्रह्मचर्य की अगुप्तियों का वर्णन है। समवायांग सूत्र के दशवें समवाय का पहला सूत्र---'दसविहे समणधम्मे पण्णत्ते' है तो प्रश्नव्याकरण 43 में भी श्रमणधर्म के दस प्रकार बताये हैं। समवायांग सूत्र के ग्यारहवें समवाय का पहला सूत्र--'एक्कारस उवासगपडिमाओ पण्णताओ' है तो प्रश्नव्याकरण 44 में भी उपासक की ग्यारह प्रतिमाओं का उल्लेख है। समवायांग सूत्र के बारहवें समवाय का पहला सूत्र-'बारस भिक्खपडिमाओ पण्णत्तायो' है तो प्रश्नव्याकरण 45 में भी बारह प्रकार की भिक्षुप्रतिमाओं का उल्लेख हुआ है। समवायांग के सोलहवें समवाय का पहला सूत्र-'सोलस या गाहासोलसगा पणत्ता' है तो प्रश्नव्याकरण 46 में सूत्रकृतांग के सोलहवें अध्ययन का नाम गाथाषोडशक बताया है। समवायांग के सत्तरहवें समवाय का पहला सूत्र--सत्तरसविहे असंजमे पण्णत्ते' है तो प्रश्नव्याकरण'४" में भी सत्तरह प्रकार के असंयम का प्रतिपादन है। समवायांग सूत्र के अठारहवें समवाय का पहला सूत्र--- 'अट्ठारसविहे बंभे पण्णत्ते' है तो प्रश्नव्याकरण 448 में भी ब्रह्मचर्य के अठारह प्रकार बताये हैं। समबायांग सूत्र के उन्नीसवें समवाय का पहला सूत्र—'एगूणवीसं णायज्झयणा पण्णत्ता' है तो प्रश्नव्याकरण 46 में भी ज्ञाताधर्मकथा के उन्नीस अध्ययन बताये हैं। समवायांग के तेईसवें समवाय का पहला सूत्र--'तेवीसं सूयगडझयणा पश्णत्ता' है तो प्रश्नव्याकरण४५० में भी सूत्रकृतांग के तेईस अध्ययनों का सूचन है। समवायांग के पच्चीसवें समवाय का पहला सूत्र-'पूरिम-पच्छिमगाणं तित्थगराणं पंचजामस्स पणवीसं भावणाश्रो पण्णत्ताओ' है तो प्रश्नव्याकरण४५१ में भी प्रथम और अन्तिम तीर्थंकरों के पांच महाव्रतों की पच्चीस भावनाएं बताई हैं। समयायांग के सत्तावीसवें समवाय का पहला सूत्र--सत्तावीसं अणगारगुणा पण्णता' है तो प्रश्नव्याकरण 42 में भी श्रमणों के सत्तावीस गुणों का प्रतिपादन किया है। समवायांग के अठाईसवें समवाय का प्रथम सूत्र-- 'अटठावीसविहे आयारपकप्पे पण्णत्ते' है तो प्रश्नव्याकरण४४3 में भी आचारप्रकल्प के अटठावीस प्रकार बताये हैं। . ...-- -.442. प्रश्नव्याकरण पाश्रवद्वार 4 443. प्रश्नव्याकरण संवरद्वार 5 444. प्रश्नव्याकरण संवरद्वार 5 445. प्रश्नव्याकरण संवरद्वार 5 446. . प्रश्न व्याकरण संवरद्वार 5 447, प्रश्नव्याकरण संवरद्वार 5 448. प्रश्नव्याकरण संवरद्वार 4 449, प्रश्नव्याकरण संवरद्वार 5 450. प्रश्न व्याकरण संवरद्वार 5 451. प्रश्नव्याकरण संवरद्वार 5 452. प्रश्नव्याकरण संवरद्वार 5 453. प्रश्नव्याकगण संवरद्वार 5 [ 78 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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