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________________ समवायांग के चौदहवें समवाय का दशा सूत्र-'पंचमीए पुढवीए...' है तो३७८ भगवती में भी धूमप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति चौदह सागरोपम की कही है। समवायांग के चौदहवें समवाय का ग्यारहवां सूत्र-'असुरकूमाराणं देवाण......'है तो भगवती 376 में भी असुरकुमारदेवों की स्थिति चौदह पल्योपम की बतायी है। समवायांग के चौदहवें समवाय का बारहवाँ सूत्र--'सोहम्मीसाणेसू...' है तो भगवती3८० में भी सौधर्म और ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति चौदह पल्योपम की कही है। समवायांग के चौदहवें समवाय का तेरहवां सूत्र-'लंतए कप्पे...' है तो भगवती3८1 में भी लांतक कल्प के देवों की उत्कृष्ट स्थिति चौदह सागरोपम की बतायी है। समवायांग के चौदहवें समवाय का चौदहवाँ सूत्र-'महासुक्के कप्पे...' है तो भगवती3८२ में भी महाशुक्र कल्प के देवों की जघन्य स्थिति चौदह सागरोपम को बतायी है। समवायांग के चौदहवें समवाय का पन्द्रहवां सूत्र-'जे देवा...' है तो भगवती३८3 में भी श्रीकान्त देवों के चौदह सागर की स्थिति कही है। समवायांग के पन्द्रहवे समवाय का पांचवाँ सूत्र-'चेत्तासोएसु ण मासेसु...' है तो भगवती 84 में भी छः नक्षत्र चन्द्र के साथ पन्द्रह मुहूर्तपर्यन्त योग करते हैं। समवायांग के पन्द्रहवें समवाय का सातवाँ सूत्र-'मणसाणं....' है तो भगवती3८५ में भी मनुष्य के पन्द्रह योग कहे हैं। समवायांग के पन्द्रहवें समवाय का आठवाँ सूत्र—'इमीसे णं रयणप्पहाए...' है तो भगवती3८६ में भी रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति पन्द्रह पल्योपम की बतायी है। समवायांग के पन्द्रहवें समवाय का नवमा सूत्र-'पंचमीए पुढवीए..' है तो भगवती३८७ में भी धूमप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति पन्द्रह सागरोपम की कही है। समवायांग के पन्द्रहवें समवाय का सूत्र-'असुरकुमाराणं देवाणं...' है तो भगवती3८८ में भी कुछ असुर कुमार देवों की स्थिति पन्द्रह पल्योपम की कही है। 378. भगवती-श. 1 उ. 1 379. भगवती-श. 1 उ. 1 380. भगवती-श. 1 उ. 1 381. भगवती--श. 1 उ. 1 382. भगवती-श. 1 उ. 1 383. भगवती--श. 1 उ. 1 384. भगवती-श. 11 उ. 11 385. भगवती-श. 1 उ. 1 386. भगवती–श. 1 उ. 1 387. भगवती-श. 1 उ. 1 388. भगवती-श. 1 उ. 1 [ 72 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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