________________ समवायांग के बारहवें समवाय का सोलहवाँ सूत्र-'लंतए कप्पे अत्थेगइयाणं........' है तो भगवती६७ में भी लांतक कल्प के कुछ देवों की स्थिति बारह पत्योपम की बतायी है। समवायांग के बारहवें समवाय का सत्तरहवाँ सूत्र--'जे देवा माहिंद.......' है तो भगवती3६८ में भी माहेन्द्रध्वज, आदि देवों की उत्कृष्ट स्थिति बारह सागरोपम की कही है। समवायांग के तेरहवें समवाय का नवमा सूत्र---'इमीसे णं रयणप्पहाए ......' है तो भगवती 66 में भी रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति तेरह पल्योपम की कही है। समवायांग के तेरहवें समवाय का दशमां सूत्र--पंचमीए पुढवीए......' है तो भगवती 370 में भी धमप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति तेरह मागरोपम प्रतिपादित है। समवायांग के तेरहवें समवाय का ग्यारहवाँ सूत्र---'असुरकुमारणं देवाणं ...' है तो भगवती 371 में भी कुछ असुरकुमार देवों की स्थिति तेरह पल्योपम की बतायी है / समवायांग के तेरहवें समवाय का बारहवाँ सूत्र - 'सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु.......' है तो भगवती३७२ में भी सौधर्म व ईशान कल्प' के कुछ देवों की स्थिति तेरह पत्योपम की कही है। समवायांग के तेरहवें समवाय का तेरहवां सूत्र---'लंतए कप्पे.......' है तो भगवती3७३ में भी लांतक कल्प के कुछ देवों की स्थिति तेरह सागरोपम की कही है। समवायांग के तेरहवें समवाय का चौदहवाँ सूत्र-'जे देवा वज्ज सुवज्जं........' है तो भगवती 74 में भी वज्र-सुवज्र आदि देवों की उत्कृष्ट स्थिति तेरह सागरोपम की बतायी है। समवायांग के तेरहवें समवाय का पन्द्रहवाँ सूत्र-'ते णं देवा....' है तो भगवती३७५ में भी वज्र आदि लोकावतंसक देव तेरह पक्ष से श्वासोच्छ्वास लेते कहे हैं। समवायांग के चौदहवें समवाय का प्रथम सूत्र-'चउद्दस भूयग्गामा.......' है तो भगवती 376 में भी सूक्ष्मअपर्याप्त पर्याप्त आदि चौदह भूतग्राम बताये हैं / समवायांग के चौदहवें समवाय का नवमा सूत्र--'इमीसे ण रयणप्पहाए......' है तो भगवती 377 में भी रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरपिकों की स्थिति चौदह पल्योपम की कही है। 367. भगवती-श. 1 उ. 1 368. भगवती---श. 1 उ. 1 369. भगवती---श. 1 उ. 1 370. भगवती-श. 1 उ.१ 371. भगवती- श. 1 उ. 1 372. भगवती-श. 1 उ. 1 373. भगवती-श. 1 उ. 1 374. भगवती--श. 1 उ. 1 375. भगवती---श. 1 उ. 1 376. भगवती-श. 25 उ. 1 377. भगवती--श. 1 उ.१ [ 71 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org