________________ समवायांग के आठवें समवाय का म्यारहवां सूत्र-'चउत्थीए पुढवीए.....' है तो भगवती323 में भी पंकप्रभा नैरयिकों की स्थिति आठ सागरोपम की है। / समवायांग के पाठवें समवाय का बारहवां सूत्र--'असुर कुमाराणं देवाणं .......' है तो भगवती३ 24 में भी असुरकुमारों की स्थिति आठ पल्योपम की कही है। समवायांग के आठवें समवाय का तेरहवा सूत्र-'सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु.....' है तो भगवती२५ में भी मोधर्म और ईशान कल्प के देवों की स्थिति आठ पल्योपम की कही है। समवायांग के आठवें समवाय का चौदहवां सूत्र-'बंभलोए कप्पे........' है तो भगवती3 26 में भी ब्रह्मलोक कल्प के देवों की स्थिति पाठ सागरोपम की प्रतिपादित है। समवायांग के आठवें समवाय का पन्द्रहवां सूत्र-जे देवा अच्चि........' है तो भगवती 32" में भी अचि, अचिमाली आदि की उत्कृष्ट स्थिति पाठ सागर की कही है। समवायांग के आठवें समवाय का सोलहवाँ सूत्र-'ते णं देवा अट्ठाह........' है तो भगवती३२८ में भी अचि आदि देव पाठ पक्ष से श्वासोच्छ्वास लेते हैं। समवायांग के पाठवें समवाय का सत्तरहवां सूत्र-'तेसिं णं देवाणं अहिं ........' है तो भगवती 326 में भी अचि, प्रादि देवों को आहार लेने की इच्छा आठ हजार वर्ष से होती कही है। समवायांग नबमें समवाय का ग्यारहवाँ सूत्र-'दंसणावरणिज्जस्स...."कम्मस्स' है तो भगवती33° में भी निद्रा, प्रचला आदि दर्शनावरणीय कर्म की नौ प्रकृतियां कही हैं। समवायांग से नवमें समवाय का बारहवां सूत्र-'इमीसे णं रयणप्पहाए... ...' है तो भगवती33' में भी रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नरयिकों की स्थिति नौ पल्योपम को बतायी है। समवायांग के नवमें समवाय का तेरहवा सूत्र--'चउत्थीए पुढवीए.......' है तो भगवती 332 में भी पंकप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति नो सागर की बतायी है। समवायांग के नवमें समवाय का चौदहवा सूत्र-"असुरकूमाराण देवाणं ......." है तो भगवती 333 में भी असुरकुमार देवों की स्थिति नो पल्योपम की कही है। - 323. भगवती-श. 1 उ. 1 324. भगवती--श. 1 उ. 1 325. भगवती-श. 1 उ. 1 326. भगबती-श. 1 उ.१ 327. भगवती-श. 1 उ. 1 328. भगवती-श.१ उ. 1 329. भगवती--श. 1 उ. 1 330. भगवती--श. 1 331. भगवती-श. 1 उ. 1 332. भगवती-श. 1 उ.१ 333. भगवती-श. 1 उ. 1 [ 67 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org