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________________ समवायांग के प्रथम समवाय का पन्द्रहवां सूत्र हैं-"एगे आसवें" तो सुकृतांग 248 में भी आश्रव का निरूपण है। समवायांग के प्रथम समवाय का सोलहवां सूत्र-“एगे संवरे" है तो सूत्रकृतांग 246 में भी संवर की प्ररूपणा हुयी है। समवायांग के प्रथम समवाय का सत्तरहवां सत्र-"एगा वेयणा" है तो सुत्रकृतांग२४० में भी वेदना का वर्णन है। ___ समवायांग के प्रथम समवाय का अठारहवां सूत्र है-"एगा निज्जरा" तो सूत्रकृतांग२५१ में भी निर्जरा का वर्णन है। समवायांग के द्वितीय समवाय का प्रथम सूत्र-"दो दण्डा पण्णत्ता........" है तो सूत्रकृतांग 252 में भी अर्थदण्ड और अनर्थदण्ड का वर्णन है। समवायांग के तेरहवें समवाय का प्रथम सूत्र-"तेरस किरियाठाणा पण्णत्ता"......" है तो सूत्रकृतांग 253 में भी क्रियाओं का वर्णन है। ___ समवायांग के बावीसवें समवाय का प्रथम सूत्र है-"बावीसं परीसहा पण्णत्ता" तो सूत्रकृतांग२५४ में भी परीषहों का वर्णन है। इस तरह समवायांग और सूत्रकृतांग में अनेक विषयों की समानता है। स्थानाङ्ग और समवायांग ये दोनों आगम एक शैली में निर्मित हैं। अत: दोनों में अत्यधिक विषयसाम्य है। इन दोनों की तुलना स्थानाङ्गसूत्र की प्रस्तावना में की जा चुकी है, अतएव यहाँ उसे नहीं दोहरा रहे हैं। जिज्ञासुजन उस प्रस्तावना का अवलोकन करें। समवायांग और भगवती समवायांग और भगवती इन दोनों आगमों में भी अनेक स्थलों पर विषय में सरशता है। अत: यहां समवायांगगत विषयों का भगवती के साथ तुलनात्मक अध्ययन दे रहे हैं। समवायांग के प्रथम समवाय का प्रथम सूत्र है-"एगे आया" तो भगवती 255 में भी चैतन्य गुण की दृष्टि से आत्मा एक स्वरूप प्रतिपादित किया है। समवायांग के प्रथम समवाय का द्वितीय सूत्र है--"एगे अणाया" तो भगवती 56 सूत्र में भी अनुपयोग लक्षण की दृष्टि से अनात्मा का एक रूप प्रतिपादित है। 248. सूत्रकृतांग-श्रु. 2 अ. 5 249. सूत्रकृतांग-श्रु. 2 अ. 5 250. सूत्रकृतांग-श्रु. 2 अ.५ 251. सूत्रकृतांग-श्रु. 2 अ. 5 252. सूत्रकृतांग-श्रु. 2 अ.२ 253. सूत्रकृतांग-श्रु. 2 अ. 2 254, सूत्रकृतांग-श्रु. 2 अ. 2 255. भगवती-शतक 12 उद्देशक 10 256. भगवती-शतक 1 उ. 4 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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