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________________ 240] [समवायाङ्गसूत्र ६६९-एएसि णं चउध्वीसाए तित्थगराणं चउव्वीसं पियरो भविस्संति, चउव्वीसं मायरो भविस्संति, चउव्वीसं पढमसीसा भविस्संति, चउव्वीसं पढमसिस्सणीओ भविस्संति, चउन्धीसं पढमभिक्खादायगा भविस्संति, चउव्वीसं चेइयरुक्खा भविस्संति / उक्त चौवीस तीर्थंकरों के चौवीस पिता होंगे, चौवीस माताएं होंगी, चौवीस प्रथम शिष्य होंगे, चौवीस प्रथम शिष्याएं होंगी, चौवीस प्रथम भिक्षा-दाता होंगे और चौवीस चैत्य वृक्ष होंगे। ६७०-जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए बारस चक्कवट्टिणो भविस्संति / तं जहा भरहे य दोहदंते गूढदंते य सुद्धदंते य / सिरिउत्ते सिरिभूई सिरिसोमे य सत्तमे // 83 // पउमे य महापउमे विमलवाहणे [लेतह] विपुलवाहणे चेव / रि? बारसमे वुत्ते आगमिस्सा भरहाहिवा // 84 // इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में आगामी उत्सर्पिणी में बारह चक्रवर्ती होंगे / जैसे 1. भरत, 2. दीर्घदन्त, 3. गूढदन्त, 4. शुद्धदन्त, 5. श्रीपुत्र. 6. श्रीभूति, 7. श्रीसोम, 8. पद्म, 9. महापद्म, 10. विमलवाहन, 11. विपुलवाहन और बारहवाँ रिष्ट, ये बारह चक्रवर्ती आगामी उत्सर्पिणी काल में भरत क्षेत्र के स्वामी होंगे / / 83-84 // ६७१-एएसि णं बारसण्हं चक्कवट्टीणं बारस पियरो, बारस मायरो भविस्संति, बारस इत्थीरयणा भविस्संति / इन बारह चक्रवत्तियों के बारह पिता, बारह माता और बारह स्त्रीरत्न होंगे। ६७२-जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे प्रागमिस्साए उस्सप्पिणीए नव बलदेव-वासुदेव-पियरो भविस्संति, नव वासुदेवमायरो भविस्संति, नव बलदेवमायरो भविस्संति, नव दसारमंडला भविस्संति / तं जहा---उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा प्रोयंसी तेयंसी। एवं सो चेव वण्णओ भाणियचो जाव नीलगपीतगवसणा दुवे दुवे राम-केसवा भायरो भविस्संति / तं जहा नंदे य नंदमित्ते दोहबाहू तहा महाबाहू। अइबले महाबले बलभद्दे य सत्तमे // 5 // दुविट्ठ य तिवट्ठ य आगमिस्साण वण्हिणो। जयंते विजए भद्दे सुप्पभे य सुदंसणे / / 86 // आणंदे नंदणे पउमे संकरिसणे अपच्छिमे। इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में आगामी उत्सपिणी काल में नौ बलदेवों और नौ वासुदेवों के पिता होंगे, नौ वासुदेवों की माताएं होंगी, नौ बलदेवों की माताएं होंगी, नौ दशार-मंडल होंगे। वे उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष, प्रधान पुरुष, प्रोजस्वी तेजस्वी प्रादि पूर्वोक्त विशेषणों से युक्त होंगे। पूर्व में जो दशार-मंडल का विस्तृत वर्णन किया है, वह सब यहाँ पर भी यावत् बलदेव नील वसनवाले और वासुदेव पीत वसनवाले होंगे, यहाँ तक ज्यों का त्यों कहना चाहिए। इस प्रकार भविष्यकाल में दो-दो राम और केशव भाई होंगे। उनके नाम इस प्रकार होंगे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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