SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 336
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विविधविषयनिरूपण] [215 प्रतिपाति-अप्रतिपाति द्वार की अपेक्षा देशावधिज्ञान प्रतिपाति है और सर्वावधिज्ञान अप्रतिपाति है / भवप्रत्यय अवधिज्ञान भव-पर्यन्त अप्रतिपाति है और भव छूटने के साथ प्रतिपाति है / क्षायोपशमिक गुणप्रत्यय अवधिज्ञान प्रतिपाति भी होता है और अप्रतिपाति भी होता है। ६०५-सीया य दव्व सारीर साया तह वेयणा भवे दुक्खा / अब्भुवगमुवक्कमिया जीयाए चेव अणियाए // 1 // वेदना के विषय के शोत, द्रव्य, शारीर, साता, दुःखा, प्राभ्युपगमिकी, औपक्रमिकी, निदा और अनिदा इतने द्वार ज्ञातव्य हैं / / 1 / / ६०६--नेरइया णं भंते ! कि सीतं वेयणं वेयंति, उसिणं वेयणं वेयंति, सोतोसिणं वेयणं धेयंति ? गोयमा! नेरइया० एवं चेव वेयणापदं भाणियध्वं / भगवन् ! नारकी क्या शीत वेदना वेदन करते हैं, उष्णवेदना वेदन करते हैं, अथवा शीतोष्ण वेदना वेदन करते हैं ? गौतम ! नारकी शोत वेदना वेदन करते हैं, इस प्रकार से वेदना पद कहना चाहिए। विवेचन–वेदना के विषय में शीत आदि द्वार जानने के योग्य हैं। मूल में शीत पद के आगे पठित 'च' शब्द से नहीं कही गई प्रतिपक्षी वेदनाओं की सूचना दी गई है। तदनुसार वेदना तीन प्रकार की है-शीत वेदना, उष्ण वेदना और शीतोष्ण वेदना / नीचे की पृथिवियों के नारकी केवल शीत वेदना का ही अनुभव करते हैं और ऊपर की पृथिवियों के नारकी केवल उष्ण वेदना का ही अनुभव करते हैं / शेष तीन गति के जीव शीत वेदना का भी, उष्ण वेदना का भी, और शीतोष्ण वेदना का भी बेदन करते हैं। 'द्रव्य' द्वार में द्रव्य पद से साथ, क्षेत्र, काल और भाव भी सूचित किये गये हैं। अर्थात् वेदना चार प्रकार की है --द्रव्यवेदना-जो पुद्गल द्रव्य के सम्बन्ध से वेदन की जाती है, क्षेत्रवेदना---जो नारक आदि उपपात क्षेत्र के सम्बन्ध से वेदन की जाती है, कालवेदना-जो नारक आदि के ग्रायु-काल के सम्बन्ध से नियत काल तक भोगी जाती है। जो वेदनीय कर्म के उदय से वेदना भोगी जाती है, उसे भाव-वेदना कहते हैं। नारकों से लेकर वैमानिक देवों तक सभी जीव चारों प्रकार की बेदनाओं को वेदन करते हैं। 'शारोर' द्वार की अपेक्षा वेदना तीन प्रकार की कही गई हैं---शारीरी, मानसी और शारीर. मानसी / कोई वेदना केवल शारीरिक होती है, कोई केवल मानसिक होती है और कोई दोनों से सम्बद्ध होती है / सभी संज्ञी पंचेन्द्रिय चारों गति के जीव तीनों ही प्रकार की वेदनाओं को भोगते हैं। किन्तु एकेन्द्रिय से लेकर असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव केवल शारीरी वेदना को ही भोगते हैं। 'साता' द्वार की अपेक्षा वेदना तीन प्रकार की है-साता वेदना, असाता वेदना और साता-असाता वेदना / सभी संसारी जीव तीनों ही प्रकार की वेदनाओं को भोगते हैं। 'दुःख' पद से तीन प्रकार की बेदना सूचित की गई है---सुखवेदना, दुःखवेदना और सुखदुःख वेटना / सभी चतुर्गति के जीव इन तीनों ही प्रकार की वेदनाओं का अनुभव करते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy