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________________ 202] [ समवायाङ्गसूत्र रत्नप्रभा पृथिवी का बाहल्य (मोटाई) एक लाख अस्सी हजार योजन है। शर्करा पृथिवी का बाहल्य एक लाख बत्तीस हजार योजन है। वालुका पृथिवी का बाहल्य एक लाख अट्ठाईस हजार योजन है / पंकप्रभा पृथिवी का बाहल्य एक लाख वीस हजार योजन है। धूमप्रभा पृथिवी का बाहल्य एक लाख अट्ठारह हजार योजन है। तमःप्रभा पृथिवी का बाहल्य एक लाख सोलह हजार योजन है और महातमःप्रभा पृथिवी का बाहल्य एक लाख आठ हजार योजन है / / 1 / / रत्नप्रभा पृथिवी में तीस लाख नारकावास हैं / शर्करा पृथिवी में पच्चीस लाख नारकावास हैं / वालुका पृथिवी में पन्द्रह लाख नारकावास हैं। पंकप्रभा पृथिवी में दश लाख नारकावास हैं। धूमप्रभा पृथिवी में तीन लाख नारकावास हैं / तमःप्रभा पृथिवी में पांच कम एक लाख नारकावास हैं। महातमः पृथिवी में (केवल) पांच अनुत्तर नारकावास हैं / / 2 / / असुरकुमारों के चौसठ लाख भवन हैं / नागकुमारों के चौरासी लाख भवन हैं। सुपर्णकुमारों के बहत्तर लाख भवन हैं / वायुकुमारों के छयानवै लाख भवन हैं / / 3 / / द्वीपकुमार, दिशाकुमार, उदधिकुमार, विद्युत्कुमार, स्तनितकुमार, अग्निकुमार इन छहों युगलों के छियत्तर (76) लाख भवन हैं // 4 // सौधर्मकल्प में बत्तीस लाख विमान हैं। ईशानकल्प में अट्ठाईस लाख विमान हैं / सनत्कुमारकल्प में बारह लाख विमान हैं। माहेन्द्रकल्प में पाठ लाख विमान हैं / ब्रह्मकल्प में चार लाख विमान हैं। लान्तककल्प में पचास हजार विमान हैं। महाशुक्र विमान में चालीस हजार विमान हैं / सहस्रारकल्प में छह हजार विमान हैं // 5 // अानत, प्राणत कल्प में चार सौ विमान हैं। प्रारण और अच्युत कल्प में तीन सौ विमान हैं। इस प्रकार इन चारों ही कल्पों में विमानों की संख्या सात सौ जानना चाहिए // 6 // अधस्तन-नीचे के तीनों ही ग्रैवेयकों में एक सौ ग्यारह विमान हैं। मध्यम तीनों ही वेयकों में एक सौ सात विमान हैं / उपरिम तीनों ही ग्रंवेयकों में एक सौ विमान हैं। अनुत्तर विमान पांच ही हैं // 7 // ५८४–दोच्चाए णं पुढवीए, तच्चाए णं पुढवीए, चउत्थीए पुढवीए, पंचमीए पुढवीए, छट्ठीए पुढवीए, सत्तमीए पुढवीए गाहाहि भाणियन्वा / [. .........] इसी प्रकार ऊपर की गाथाओं के अनुसार दूसरी पृथिवी में, तीसरी पृथिवी में, चौथी प्रथिवी में, पांचवीं पृथिवी में, छठी पृथिवी में और सातवीं पृथिवी में नरक बिलों- नारवावासों की संख्या कहना चाहिए। इसी प्रकार उक्त गाथाओं के अनुसार दशों प्रकार के भवनवासी देवों के भवनों की, बारह कल्पवासी देवों के विमानों की, तथा गैवेयक और अनुत्तर देवों के विमानों की भी संख्या जानना चाहिए। 585 --सत्तमाए पुढवीए पुच्छा। गोयमा ! सत्तमाए पुढवीए अठुत्तरजोयणसयसहस्साई बाहल्लाए उवरि अद्धतेवन्नं जोयणसहस्सा ओगाहेत्ता हेट्ठा वि अद्धतेवन्नं जोयणसहस्साई वज्जित्ता मज्झे तिसु जोयणसहस्सेसु एत्थ णं सत्तमाए पुढवीए नेरइयाणं पंच अणुत्तरा महइमहालया महानिरया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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