________________ नगरकथा, जनपदकथा, स्त्रीकथा आदि / प्रस्तुत समवाय में चार विकथाओं का उल्लेख है। स्थानांग में एक एक विकथा के चार-चार प्रकार भी बताये हैं। और सातवें स्थान में सात विकथाओं का भी उल्लेख प्राप्त होता है। विकथानों के पश्चात् चार संज्ञाओं का उल्लेख है। सामान्यतः अभिलाषा को संज्ञा कहते हैं। दूसरे शब्दों में आसक्ति संज्ञा है। यहां पर संज्ञा के चार भेदों का निरूपण है। स्थानांगसूत्र में एक-एक संज्ञा के उत्पन्न होने के चार-चार कारण भी बताये हैं / दशवें स्थान में संज्ञा के दश प्रकार भी बताये हैं। बन्ध के चार प्रकारों के सम्बन्ध में हम पूर्व लिख ही चुके हैं / इस तरह चतुर्थ समवाय में चिन्तन की विपुल सामग्री विद्यमान है / पांचवाँ समवाय: एक विश्लेषण वाय में पांच क्रिया, पाँच महाव्रत, पांच कामगुण, पांच पाश्रवद्वार, पांच संवरद्वार, पांच निर्जरास्थान, पांच समिति, पांच' अस्तिकाय, रोहिणी, पूनर्वसु, हस्त, विशाखा धनिष्टा नक्षत्रों के पांच-पांच तारे, नारकों और देवों की पांच पल्योपम, और पांच सागरोपम की स्थिति तथा पांच भव कर मोक्ष जाने वाले भवसिद्धिक जीवों का उल्लेख है। सर्वप्रथम क्रियाओं का उल्लेख है। क्रिया का अर्थ "करण" और व्यापार" है। कर्म-बन्ध में कारण बनने वाली चेष्टाएं "क्रिया' हैं / दूसरे शब्दों में यों कह सकते हैं कि मन, वचन और काया के दुष्ट व्यापारविशेष को क्रिया कहते हैं। क्रिया कर्म-बन्ध की मूल है। वह संसार-जन्ममरण की जननी है। जिससे कर्म का प्राश्रव होता है, ऐसी प्रवृत्ति क्रिया कहलाती है। स्थानांगसूत्र में भी क्रिया के जीव-क्रिया, अजीव क्रिया और फिर जीव-अजीव क्रिया के भेद-प्रभेदों की चर्चा है। यहां पर मुख्य रूप से पाँच क्रियाओं का उल्लेख है। प्रज्ञापना-सूत्र मे पच्चीस क्रियाओं का भी वर्णन मिलता है। जिज्ञास को वे प्रकरण देखने चाहिए / क्रियानों से मुक्त होने के लिए महाव्रतों का निरूपण है। महाव्रत श्रमणाचार का मूल है / आगम साहित्य में महाव्रतों के सम्बन्ध में विस्तार से विश्लेषण किया गया है। प्रागमों में महाव्रतों की तीन परम्पराएँ मिलती हैं। प्राचारांग७२ में अहिंसा, सत्य, बहिद्धादान इन तीन महाव्रतों का उल्लेख प्राप्त होता है। स्थानांग,७३ उत्तराध्ययन और दीघनिकाय७५ में चार याम का वर्णन है। वे ये हैं-अहिंसा, सत्य, प्रचौर्य और बहिद्धादान / बौद्ध साहित्य में अनेक स्थलों पर चातुर्याम का उल्लेख हुमा है। प्रश्नव्याकरण के संवर प्रकरण में महाव्रतों की चर्चा है। दशवकालिक सूत्र में प्रत्येक महावत का विस्तृत 66. अंगुत्तरनिकाय 10-69 67. स्थानांगसूत्र, चतुर्थ स्थान, सूत्र 282 68. स्थानांग, स्था. 4, सूत्र 569 69. स्थानांग, स्था. 10, सूत्र-७५१ 70. स्थानांग सूत्र-२१, 52 71. प्रज्ञापनासूत्र--२२ 72. प्राचारांग 8 / 15 73. स्थानाङ्ग 266 74. उत्तराध्ययन 23123 75. दीघनिकाय 76. प्रश्नव्याकरण, सूत्र-६/१० 77. दशवकालिक सूत्र, प्र. 4 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org