________________ 188] [समवायाङ्गसूत्र ५४९-से णं अंगट्टयाए दसमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, पणयालीसं उद्देसणकाला, पणयालीसं समुद्देसणकाला, संज्खेजाणि पयसयसहस्साणि पयग्गेणं पण्णत्ताई / संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जसि परूविज्जति निदंसिज्जति उवदंसिर्जति / से एवं आया, से एवं णाया, एवं विणाया, एवं चरण-करणपरूवणया आघविज्जति० से तं पण्हावागरणाई१०। प्रश्नव्याकरण अंगरूप से दशवां अंग है, इसमें एक श्रुतस्कन्ध है, पैतालीस उद्देशन-काल हैं, पैंतालिस समुद्देशन-काल हैं। पद-गणना की अपेक्षा संख्यात लाख पद कहे गये हैं। इसमें संख्यात अक्षर हैं अनन्त गम है, अनन्त पर्याय हैं, परीत स हैं, अनन्त स्थावर है, इसमें शाश्वत कृत, निबद्ध, निकाचित जिन-प्रज्ञप्त भाव कहे जाते हैं, प्रज्ञापित किये जाते हैं, प्ररूपित किये जाते हैं, निदर्शित किये जाते हैं, और उपदर्शित किये जाते हैं। इस अंग के द्वारा प्रात्मा ज्ञाता होता है, विज्ञाता होता है। इस प्रकार चरण और करण की प्ररूपणा के द्वारा वस्तु-स्वरूप का कथन, प्रज्ञापन, निदर्शन और उपदर्शन किया जाता है / यह दशवें प्रश्नव्याकरण अंग का परिचय है 10 / ५५०–से कि तं विवागसुयं? विवागसुए णं सुक्कड-दुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे प्राघविज्जति / से समासओ दुबिहे पण्णते। तं जहा-दुहविवागे चेव, सुहविवागे चेव, तत्थ गं दस दुहविवागाणि, दस सुहविवागाणि / विपाकसूत्र क्या है ---इसमें क्या वर्णन है ? विपाकसूत्र में सुकृत (पुण्य) और दुष्कृत (पाप) कर्मों का फल-विपाक कहा गया है। यह विपाक संक्षेप से दो प्रकार का है-दुःख-विपाक और सुख-विपाक। इनमें दुःख-विपाक में दश अध्ययन हैं और सुख-विपाक में भी दश अध्ययन हैं। ५५१-से कि तं दुहविवागाणि ? दुहविवागेसु गं दुहविवागाणं नगराई उज्जाणाई चेइयाई वणखंडा रायाणो अम्मा-पियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहाओ नगरगमणाई संसारपबंधे दुहपरंपरानो य आघविज्जति / से त्तं दुहविवागाणि / यह दुःख विपाक क्या है इसमें क्या वर्णन है ? दुःख-विपाक में दुष्कृतों के दुःखरूप फलों को भोगनेवालों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, राजा, माता-पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथाएं, (गौतम स्वामी का भिक्षा के लिए) नगर-गमन, (पाप के फल से) संसार-प्रबन्ध में पड़ कर दु:ख परम्पराओं को भोगने का वर्णन किया जाता है। यह दुःख-विपाक है। ५५२–से कि तं सुहविवागाणि ? सुहविवागेसु सुहविवागाणं णगराई उज्जाणाई चेइयाई वणखंडा रायाणो अम्मा-पियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहानो इहलोइय-परलोइय-इड्डिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा पडिमाओ संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाइं पायोवगमणाई देवलोगगमणाई सुकुलपच्चायाई पुणबोहिलाहा अंतकिरियाओ य आघविज्जंति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org