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________________ 168] [समवायाङ्गसूत्र भाग में आठ रुचक प्रदेश अवस्थित हैं / उनसे चारों ओर पाँच-पाँच हजार योजन तक मन्दर पर्वत की सीमा है। उसी का प्रस्तुत सूत्र में उल्लेख किया गया है। ४९४--सहस्सारे णं कप्पे छविमाणावाससहस्सा पण्णत्ता। 6000 / सहस्रार कल्प में छह हजार विमानावास कहे गये हैं। ४९५-इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए रयणस्स कंडस्स उवरिल्लाप्रो चरमंताओ पुलगस्स फंडस्स हेट्ठिले चरमंते एस णं सत्त जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते / 7000 / रत्नप्रभा पृथिवी के रत्नकांड के ऊपरी चरमान्त भाग से पुलककांड का निचला चरमान्त भाग सात हजार योजन के अन्तरवाला है। विवेचन--रत्नप्रभा पृथिवी का रत्नकांड पहला है और पुलककांड सातवाँ है / प्रत्येक कांड एक-एक हजार योजन मोटा है / अत: प्रथम कांड के ऊपरी भाग से सातवें कांड का अधोभाग सात हजार योजन के अन्तर पर सिद्ध हो जाता है। ४९६-हरिवास-रम्मया णं वासा अट्ट जोयणसहस्साई साइरेगाई वित्थरेण पण्णत्ता / 8000 / हरिवर्ष और रम्यकवर्ष कुछ अधिक आठ हजार योजन विस्तारवाले हैं। ४९७–दाहिणड्ढ भरहस्स णं जीवा पाईण-पडीणायया दुहनो समुदं पुट्ठा नव जोयणसहस्साई आयामेणं पण्णत्ता / 9000 / [अजियस्स अरहनो साइरेगाई नव ओहिनाणसहस्साई होत्या।] पूर्व और पश्चिम में समुद्र को स्पर्श करने वाली दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र की जीवा नौ हजार योजन लम्बी है। [अजित अर्हत् के संघ में कुछ अधिक नौ हजार अवधिज्ञानी थे ] ४९८-मंदरे णं पवए धरणितले दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं पण्णत्ते / 10000 / मन्दर पर्वत धरणीतल पर दश हजार योजन विस्तारवाला कहा गया है / 499 -जम्बूदीवे णं दीवे एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते / 100000 / जम्बूद्वीप एक लाख योजन आयाम-विष्कम्भ वाला कहा गया है / ५००-लवणे णं समुद्दे दो जोयणसयसहस्साई चक्कबालविक्खंभेणं पण्णत्ते / 200000 / लवण समुद्र चक्रवाल विष्कम्भ से दो लाख योजन चौड़ा कहा गया है। विवेचन-जैसे रथ के चक्र के मध्य भाग को छोड़कर उसके प्रारों की चौड़ाई चारों ओर एक सी होती है, उसी प्रकार जम्बद्वीप लवणसमद्र के मध्य भाग में अवस्थित होने से भाग जैसा है लवण समुद्र की चौड़ाई सभी अोर दो-दो लाख योजन है अत: उसे चक्रवालविष्कम्भ कहा गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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