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________________ अष्टाशीतिस्थानक समवाय] [147 . ४०७--महाहिमवंत कूडस्स णं उवरिमंताओ सोगंधियस्स कंडस्स हेडिल्ले चरमंते एस णं सत्तासोई जोयणसयाइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते / एवं रुपिकूडस्स वि / महाहिमवन्त कट के उपरिम अन्त भाग से सौगन्धिक कांड का अधस्तन चरमान्त भाग सतासी सौ (8700) योजन अन्तरवाला है / / सा (8700) योजन अन्तरवाला है। इसी प्रकार रुक्मी कट के ऊपरी भाग से सौगन्धिक कांड के अधोभाग का अन्तर भी सतासी सौ योजन है। विवेचन-पहले बताया जा चुका है कि रत्नप्रभा के समतल भाग से सौगन्धिक कांड पाठ हजार योजन नीचे है / तथा रत्नप्रभा के समतल से दो सौ योजन ऊंचा महाहिमवन्त वर्षधर पर्वत हैं, उसके ऊपर महाहिमवन्त कूट है, उसकी ऊंचाई पाँच सौ योजन है / इन तीनों को जोड़ने पर (8000+200+500 = 8700) सूत्रोक्त सतासी सौ योजन का अन्तर सिद्ध हो जाता है। इसी प्रकार रुक्मी वर्षधर पर्वत दो सौ योजन और उसके ऊपर का रुक्मी कट पाँच सौ योजन ऊंचे हैं। प्रतः रुक्मी कट के ऊपरी भाग से सौगन्धिक कांड के नीचे तक का सतासी सौ योजन का अन्तर भी सिद्ध है। // सप्ताशीतिस्थानक समवाय समाप्त। अष्टाशीतिस्थानक-समवाय ४०८-एगमेगस्स णं चंदिम-सूरियस्स अट्ठासीइ अट्ठासीइ महागहा परिवारो पण्णत्तो। प्रत्येक चन्द्र और सूर्य के परिवार में अठासी-प्रठासी महाग्रह कहे गये हैं। ४०९-दिदिवायस्स णं अट्ठासीइ सुत्ताई पण्णत्ताई / तं जहा-उज्जसुयं परिणयापरिणयं एवं अट्ठासीइ सुत्ताणि भाणियब्वाणि जहा नंदीए। दृष्टिवाद नामक बारहवें अंग के सूत्रनामक दूसरे भेद में अठासी सूत्र कहे गये हैं। जैसे ऋजुसूत्र, परिणता-परिणता सूत्र, इस प्रकार नन्दीसूत्र के अनुसार अठासी सूत्र कहना चाहिए। (इनका विशेष वर्णन ग्रागे 147 वें स्थानक में किया गया है)। ४१०-मंदरस्स णं पन्वयस्स पुरच्छिमिल्लाओ चरमंताओ गोथुभस्स आवासपब्वयस्स पुरच्छिमिल्ले चरमंते एस णं अट्ठासोइं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते / एवं चउसु वि दिसासु नेयव्वं / मन्दर पर्वत के पूर्वी चरमान्त भाग से गोस्तूप आवास पर्वत का पूर्वी चरमान्त भाग अठासी सौ (8800) योजन अन्तरवाला कहा गया है। इसी प्रकार चारों दिशाओं में आवास पर्वतों का अन्तर जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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